छत्तीसगढ़ की राजनीति में बिखरा तीसरा मोर्चा, अलग-अलग क्षेत्र में दिखाएगा दम

रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजनीति में कांग्रेस और भाजपा के बीच ही सीधा मुकाबला होता आया है। राज्य गठन के बाद से हर चुनाव में दोनों दलों के अलावा तीसरा माेर्चा ने हर चुनाव में सात से आठ प्रतिशत वोट प्राप्त किए। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अलग होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ा और सात प्रतिशत वोट पाए। हालांकि उनकी पार्टी का सिर्फ एक विधायक चुना गया। उसके बाद हुए चुनाव में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताराचंद साहू ने अपनी अलग पार्टी छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बनाया और करीब तीन प्रतिशत वोट पाए, लेकिन उनकी पार्टी का कोई विधायक नहीं चुना गया। पिछले विधानसभा चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ और बसपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा और गठबंधन के सात विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।

वहीं इस चुनाव में अब तक तीसरे मोर्चे में बिखराव नजर आ रहा है। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ और बसपा का गठजोड़ नहीं हुआ और बसपा ने एकला चलो की राह पर नौ सीट पर उम्मीदवार घोषित कर दिए। इस चुनाव में जकांछ, बसपा, aam आदमी पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और सर्व आदिवासी समाज की पार्टी चुनाव मैदान में ताल ठोंक रही है। प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद जकांछ का जनाधार कमजोर हुआ है। जाति प्रमाणपत्र विवाद के बाद जोगी परिवार की परंपरागत सीट मरवाही पर अब जोगी परिवार से कोई उम्मीदवार नहीं बन सकता। जकांछ के दो विधायक धर्मजीत सिंह और प्रमोद शर्मा ने भी अलग राह चुन ली है। धर्मजीत ने भाजपा का दामन थाम लिया है, तो प्रमोद शर्मा टिकट के समीकरण को देखते हुए इंतजार कर रहे हैं।

बसपा का जनाधार बिलासपुर संभाग के साथ एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीट पर है। आम आदमी पार्टी सभी 90 सीट पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है। हालांकि प्रदेश स्तर पर कोई बड़ा चेहरा नहीं होने के कारण आप की उम्मीद थोड़ी कमजोर नजर आ रही है। टिकट वितरण के बाद स्थानीय स्तर पर प्रत्याशी कोई चमत्कार करें, तभी आप की उपस्थिति विधानसभा में हो सकती है। वहीं, कांग्रेस के बागी नेता अरविंद नेताम सर्व आदिवासी समाज की पार्टी के सहारे चुनावी रण में उतरे हैं। नेताम का असर बस्तर में है। राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो उनकी पार्टी की स्थिति वोटकटुआ वाली ही रहेगी। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी हीरा सिंह मरकाम के निधन के बाद कमजोर हुई है, लेकिन कोरबा और सरगुजा के आदिवासी क्षेत्रों में पार्टी का जनाधा है। लेकिन अब तक उनकी पार्टी का पिछले तीन चुनाव में विधानसभा में प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया है।

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