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म्यांमार में तख्तापलट कर सत्ता कब्जाने वाले सैन्य जुंटा भी हार की कगार पर, कभी भी हाथ से निकल सकता है देश

नाएप्यीडॉ: गृहयुद्ध से जूझ रहे म्यांमार में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन की आहट होने लगी है। विद्रोहियों के बढ़ते दबदबे के बाद अब जनरल मिन आंग ह्लाइंग के हाथ से सत्ता जाने के कयास लग रहे हैं। म्यांमार में फरवरी 2021 में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद से ही गृह युद्ध का माहौल है। इसे आगे बढ़ाते हुए अक्टूबर 2023 में, तीन सशस्त्र गुटों ने जुंटा के खिलाफ ऑपरेशन 1027 शुरू किया था, जिसका मकसद जुंटा को शासन से हटाना है। इस ऑपरेशन के तहत बाद से जुंटा के कब्जे वाले क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा विपक्षी ताकतों के हाथों में आ गया है। इसमें बॉर्डर के ज्यादातर इलाके और सैन्य अड्डे भी शामिल हैं। अगर इसी तरह से लड़ाई जारी रहती है और कोई बाहरी राजनयिक या सैन्य हस्तक्षेप नहीं होता तो जुंटा बहुत जल्दी विद्रोही गुटों के सामने हार जाएगा।

द् डिप्लोमैट की रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार की सेना को संख्या और गुणवत्ता दोनों के मामले में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस की एक रिसर्च के हिसाब से जुंटा सैन्य कर्मियों की संख्या करीब 150,000 है, जिनमें से 70,000 लड़ाकू सैनिक हैं। विद्रोही लड़ाकों के खिलाफ अभियान के लिए 20 और 1,000 का सैनिक-जनसंख्या अनुपात आवश्यक माना जाता है। म्यांमार की जनसंख्या 53 मिलियन से ज्यादा है। ऐसे मेंजुंटा को अपने10 लाख से अधिक सैनिकों की आवश्यकता होगी लेकिन उनके पास इतने सैनिक नहीं हैं।

जुंटा के पास सैनिकों की भारी कमी

किसी भी शासन व्यवस्था के लिए उग्रवाद अभियान से बचने के लिए संख्याओं का खेल महत्वपूर्ण है। विद्रोहियों के क्षेत्र पर कब्जा करने और पुनर्निर्माण प्रयासों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पर्याप्त संख्या में सैनिकों की आवश्यकता है। जुंटा के 70,000 लड़ाकू सैनिक चल रहे विद्रोह से निपटने के लिए अपर्याप्त हैं। ऐसे में हाथ से निकले क्षेत्रों को फिर से हासिल करने की बात तो बहुत दूर हो जाती है। वहीं जो सैनिक हैं, उनके पास भी ट्रेनिंग और हथियारों की कमी है। संख्या बढ़ाने के लिए सेना ने नए कर्मियों की भर्ती के लिए जबरदस्ती का इस्तेमाल किया है, जो ठीक से प्रशिक्षित नहीं हैं और उनमें जुंटा के समर्थन में लड़ने के लिए प्रेरणा की कमी है। जुंटा के पास जो सेना है, वो भी गिरते मनोबल की वजह से लड़ाई से भागती नजर आई है। बीते महीनों में कई ऐसे मौके आए जब लड़ने की जगह जुंटा सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया या सीमापार पर दूसरे देशों में भाग गए।

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