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दूसरे चरण में दांव पर 258 प्रत्याशियों की किस्मत, जानिए 70 सीटों का समीकरण,कौन मारेगा बाजी

vidhansabha chunaav

रायपुर : छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के तहत 7 नवंबर को पहले चरण की 20 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं। अब 17 नवंबर को शेष 70 सीटों पर दूसरे चरण चुनाव होंगे। एक सीट को छोड़कर बाकी सभी 69 सीटों पर सुबह 8 से 5 बजे तक मतदान होंगे। वहीं गरियाबंद जिले की बिंद्रानवागढ़ सीट के 9 मतदान केंद्रों में सुबह 7 से दोपहर 3 बजे तक चुनाव होंगे। शेष मतदान केंद्रों में 69 सीटों की तरह की चुनाव कराए जाएंगे। छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं।

अंबिकापुर विधानसभा: दांव पर लगी बाबा की प्रतिष्ठा

अंबिकापुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता और वर्तमान डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव (त्रिभुनेश्वर शरण सिंहदेव) चुनाव लड़ रहे हैं। सरगुजा संभाग में कांग्रेस की हार-जीत में राजघराने की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यहां से उनके सामने बीजेपी प्रत्याशी राजेश अग्रवाल चुनाव मैदान में हैं। यहां पर कांटे की टक्कर देखी जा रही है। दोनों प्रत्याशियों के बीच कड़ा मुकाबला है। सिंहदेव के सामने लगातार चौथी बार विधायक बनने की चुनौती है। सरगुजा संभाग में उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। वहीं राजेश अग्रवाल की अग्निपरीक्षा है। वो खुद को बेहतर प्रत्याशी साबित करने में लगे हुए हैं। उन्हें पार्टी और ग्रामीणों मतदाताओं पर पूरा भरोसा है।

‘चिंतामणि ने बढ़ाई बाबा की चिंता’

बात टीएस सिंहदेव की करें तो तो लोग उन्हें प्यार से बाबा कहकर पुकारते हैं। इस बार इस सीट पर बाबा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है, क्योंकि सामरी से कांग्रेस विधायक चिंतामणि महाराज ने उन्हें ‘चिंता’ में डाल दिया है। पहले से ही अंबिकापुर में राजेश अग्रवाल के साथ बाबा का कड़ा मुकाबला देखा जा रहा था, तो दूसरी ओर हाल ही में टिकट नहीं मिलने पर सामरी से कांग्रेस  विधायक चिंतामिण महाराज बागी होकर बीजेपी प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के सामने बीजेपी का दामन थाम लिया था। उनके जाने से कांग्रेस को सरगुजा संभाग में बड़ा झटका लगा है।

लोरमी विधानसभा: अरुण साव जीते तो बन सकते हैं सीएम का फेस

लोरमी विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी अरुण साव के सामने कांग्रेस प्रत्याशी थानेश्वर साहू हैं। वर्तमान में अरुण साव बिलासपुर सांसद और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष हैं। इस वजह से ये सीट हाई प्रोफाइल हो चुकी है। पूरे प्रदेश की निगाहें इस सीट पर टिकी हुई है। क्योंकि सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा है कि बीजेपी में ओबीसी वर्ग से अरुण साव सीएम पद के प्रबल दावेदार हो सकते हैं। जिस प्रकार से प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है। पूर्व सीएम रमन सिंह के बाद बीजेपी के सभी पोस्टर्स-बैनर में उनकी तस्वीरें प्रमुखता से दिख रही हैं। पीएम नरेंद्र मोदी की रायगढ़ जिले के कोड़ातराई समेत कई सभाओं में वो पीएम के साथ रथ पर सवार दिखे, जबकि रमन सिंह मंच पर ही चुपचाप बैठे नजर आए। इसलिए लोरमी से साव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। वहीं थानेश्वर साहू सामाजिक वोटों के सहारे अपनी नैया पार करने की जुगत में लगे हुए हैं, जबकि सागर सिंह बैस के सामने अपने आप को साबित करने की चुनौती है।

जांजगीर-चांपा विधानसभा: चंदेल को सीट बचाए रखने की चुनौती

छत्तीसगढ़ के बीचो-बीच स्थित जांजगीर-चांपा को प्रदेश का हृदय स्थल कहा जाता है। कोसा, कांसा और कंचन की नगरी जांजगीर चांपा विधानसभा सीट पर चुनावी समीकरण दिलचस्प देखने को मिलते हैं। जांजगीर चांपा जिले में तीन विधानसभा सीट अकलतरा,जांजगीर चांपा,पामगढ़ है। पामगढ़ विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बाकी दोनों सीट सामान्य के लिए सुरक्षित है। विधानसभा चुनाव 2023 में इस बार जांजगीर चांपा हाई प्रोफाइल वीआईपी सीट बन चुकी है। क्योंकि यहां से छत्तीसगढ़ विधानसभा नेता प्रतिपक्ष और बीजेपी प्रत्याशी नारायण चंदेल चुनावी रण में है। उनके सामने कांग्रेस प्रत्याशी व्यास कश्यप चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं। व्यास कश्यप लंबे समय तक बीजेपी में रह चुके हैं। इसके बाद साल 2018 में बसपा के टिकट पर चुनाव  लड़ा। अब इस बार कांग्रेस ने उन पर भरोसा जताया है। वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल यहां से विधायक हैं। उनके बेटे पलाश चंदेल के खिलाफ एक आदिवासी शिक्षिका ने दुष्कर्म और गर्भपात का केस दर्ज कराया था। हालांकि सितंबर 2023 में हाईकोर्ट ने इस एफआईआर को रद्द कर चुका है। इस केस की वजह से विधायक नारायण चंदेल और उनके बेटे के छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जांजगीर-चांपा सीट सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है।

एक उप चुनाव समेत अब तक 16 बार चुनाव हो चुके हैं। जिनमें 11 बार कांग्रेस जीती है, जिनमें एक उपचुनाव सहित पहले तीन चुनाव में रामकृष्ण राठौर और बिसाहूदास महंत, उनके बेटे चरणदास महंत और बीजेपी के नारायण चंदेल ने तीन बार विधायक रह चुके हैं। चंदेल अविभाजित मध्यप्रदेश में 1998 में पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद वर्ष 2008 में दूसरी बार अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस के विधानसभा प्रत्याषी मोतीलाल देवांगन को 1190 मतों से हराकर विधायक चुने गए और उन्हें विधानसभा उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई थी। वर्ष 2018 में वे तीसरी बार यहां के विधायक बने हैं और नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। चंदेल के सामने फिर से इस सीट को बचाए रखने की चुनौती है तो कांग्रेस जीत के लिए पूरी ताकत झौंक दी है।

रायगढ़ विधानसभा: ‘ओपी चौधरी चुनाव जीते तो बन जाएंगे बड़े आदमी’

इस बार रायगढ़ सीट पर सबकी निगाह टिकी है। पूर्व आईएएस ओपी चौधरी रायगढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार बीजेपी ने उनकी सीट बदल दी है। इस बार पार्टी उन्हें खरसिया की जगह रायगढ़ से चुनाव लड़ा रही है। ऐसे में ओपी चौधरी के सामने एक बार फिर रायगढ़ से चुनाव जीतने की चुनौती है। एक बार फिर उन्हें अपने आप को साबित करने की चुनौती है। इस बार वो यदि रायगढ़ सीट जीतते हैं तो निश्चिततौर पर भाजपा में उनका कद बढ़ना तय है। क्योंकि अमित शाह रागगढ़ में चुनाव प्रचार के दौरान जनता से कहा था कि आप चौधरी को चुनाव जीता दें। इन्हें बड़ा आदमी मैं बना दूंगा। बड़ा आदमी बनाना मेरा काम है। रायगढ़ सीट पर नजर दौड़ाएं तो इस बार चौधरी के सामने कांग्रेस के प्रकाश नायक सामने हैं, जो वर्तमान विधायक हैं। ऐसे में नायक के सामने दोबारा विधायकी की सीट पर कब्जा करने का लक्ष्य है। अब देखना होगा कि वो इस अपने इस टारगेट में कितने कामयाब हो पाते हैं।

ओपी चौधरी साल 2018 के विधानसभा चुनाव में रायगढ़ जिले की खरसिया सीट से चुनाव लड़े थे। उस समय उनके सामने कांग्रेस के दिवंगत नेता नंदकुमार पटेल के बेटे उमेश पटले सामने थे। इस चुनाव में उमेश पटेल ने ओपी चौधरी को शिकस्त दी थी। उमेश पटेल ने ओपी चौधरी को 16,967 मतों से हराया था। उमेश पटेल को 94,201 वोट मिले थे, वहीं ओपी चौधरी को 77,234 वोटों से संतुष्ट होना पड़ा था। दूसरी ओर रायगढ़ का विधानसभा इस बार त्रिकोषणीय देखने को मिल रहा है। भाजपा के ओपी चौधरी और कांग्रेस के प्रकाश नायक को चुनौती देने के लिए जेसीसीजे प्रत्याशी और पूर्व महापौर मधु किन्नर चुनावी मैदान में हैं। भाजपा और कांग्रेस की सूची जारी होने के बाद अब जेसीसीजे ने रायगढ़ सीट से अपने प्रत्याशी के नाम का ऐलान किया है। मधु किन्रर जेसीसीजे का शपथ पत्र लेकर जनता के बीच जा रही हैं और अपने महापौर कार्यकाल की उपलब्धियां गिना रही हैं। मधु इस बार एक कदम गरीबी खतम की शपथ के साथ जनता से वोट मांग रही हैं।

पाटन विधानसभा: चाचा भतीजा की रोचक लड़ाई, जोगी बिगाड़ सकते हैं खेल

इस बार छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की पाटन वीआईपी हाई प्रोफाइल सीट पर चुनावी लड़ाई काफी रोचक दिख रही है। इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेसके बीच कांटे की टक्कर देखी जा रही है। कांग्रेस से जहां सीएम भूपेश बघेल खुद चुनावी ताल ठोक रहे हैं, तो वहीं बीजेपी से सीएम भूपेश के भतीजे विजय बघेल चुनावी रण में हैं। पाटन से चाचा-भतीजा (सीएम भूपेश बघेल और दुर्ग सांसद विजय बघेल) के चुनावी मुकाबले के बीच जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जोगाी (जेसीसीजे) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी भी पाटन से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में उनके आने से चुनाव त्रिकोणीय हो चुका है। भूपेश बघेल को जहां तीसरी बार लगातार जीत हासिल करने की चुनौती है तो वहीं सांसद विजय बघेल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। वो 2013 में मिली हार का बदला 2023 में लेना चाहते हैं। यदि वे चुनाव जीत गए तो पार्टी में उनका कद और बढ़ जाएगी। दूसरी ओर अमित जोगी बीजेपी को फायदा और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने में लगे हैं। इन सबके बीच तीन दिसंबर को मालूम चल जाएगा कि कौन पाटन का सरताज होगा।

कोटा विधानसभा: कोटा में पहली बार जूदेव खिलाएंगे कमल या बरकरार रहेगा रेणु जोगी का जादू?

बिलासपुर जिले की कोटा विधानसभा सीट छत्तीसगढ़ के सियासी इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हर बार की तरह इस बार भी यह सीट वीआईपी हाई प्रोफाइल बनी हुई है। साल 2023 के चुनाव में कोटा से भाजपा प्रत्याशी प्रबल प्रताप सिंह जूदेव के सामने कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव हैं। यही से वर्तमान विधायक और जेसीसीजे के संस्थापक अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी भी चुनाव मैदान में हैं। रेणु जोगी तीन बार से विधायक हैं। प्रबल प्रताप सिंह जूदेव बीजेपी के दिग्गज नेता रहे दिलीप सिंह जुदेव के बेटे हैं। इस वजह से कोटा में इस बार चुनावी घमासान है। यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला है। कोटा सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। बीजेपी यहां से कमल खिलाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। प्रबल प्रताप सिंह के सामने कोटा से कमल खिलाने की चुनौती है, तो रेणु जोगी के सामने चौथी बार इस सीट को बचाए रखने की जद्दोजहद है। वहीं अटल श्रीवास्तव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।

रायपुर दक्षिण विधानसभा: रायपुर दक्षिण में गुरु-शिष्य के बीच कांटे की टक्कर, दांव पर लगी महंत की प्रतिष्ठा

हर बार की तरह ही इस बार भी रायपुर जिले की रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट हाई प्रोफाइल है। कांग्रेस ने रायपुर जिले की हाई प्रोफाइल वीआईपी सीट रायपुर दक्षिण से पिछली बार चुनाव लड़ चुके कन्हैया अग्रवाल का टिकट काटकर सीएम के करीबी और प्राचीन दूधाधारी मठ के महंत रामसुंदर दास को टिकट दिया है। ऐसे में यहां पर चुनावी लड़ाई काफी रोचक हो गई है। अब इस सीट पर पूरे प्रदेश की नजर टिकी हुई है। क्योंकि बीजेपी प्रत्याशी और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल महंत को अपना गुरु मानते हैं। ऐसे में गुरु और शिष्य के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। बृजमोहन अग्रवाल इस सीट से साल 1990 से लगातार 7 बार से विधायक हैं और 8वीं बार चुनाव मैदान में हैं। उनके सामने 8वीं बार जीत के चक्र को बनाए रखने की चुनौती है तो महंत की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। समर्थकों का मानना है कि इस बार मुकाबला काफी करीबी होगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी महंत रामसुंदर दास वर्तमान में गोसेवा आयोग के अध्यक्ष हैं।
रायपुर पश्चिम

भाजपा के पूर्व मंत्री रहे राजेश मूणत और कांग्रेस से वर्तमान विधायक विकास उपाध्याय आमने-सामने हैं। पिछले 2018 के चुनाव में मूणत की लगातार तीन जीत का क्रम तोड़ते हुए विकास ने सफलता हासिल की थी। संसदीय सचिव विकास क्षेत्र में सक्रियता के चलते लोकप्रिय हैं। विकास के सामने दूसरी बार इस सीट को बचाए रखने की चुनौती है तो मूणत अपनी हार का बदला लेने के लिए चौथी बार चुनाव मैदान में हैं। दोनों के बीच कांटे की टक्कर देखी जा रही है।

रायपुर उत्तर : सिंधी समाज की नाराजगी में उलझी कांग्रेस

कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार कुलदीप जुनेजा को टिकट देकर सिंधी समाज की नाराजगी मोल ले ली है। नाराज अजीत कुकरेजा बागी होकर मैदान में हैं। वहीं, भाजपा ने छत्तीसगढ़ सर्व उड़िया समाज के प्रदेश अध्यक्ष पुरंदर मिश्रा पर दांव खेलकर जुनेजा को घेरने की कोशिश की है। समाजसेवी की छवि वाले पुरंदर के उड़िया समाज के मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है।

रायपुर ग्रामीण- विधायक पिता की जगह बेटे को मौका

कांग्रेस ने सात बार के विधायक 80 वर्षीय सत्यनारायण शर्मा की जगह बेटे पंकज शर्मा को यहां से उतारा है। साल 1985 में पहली बार चुने गए सत्यनारायण इस सीट से सिर्फ एक बार 2008 में हारे थे। उनके बेटे पंकज भी दो दशक से अधिक समय से संगठन से जुड़े हैं। भाजपा ने पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष मोतीलाल साहू को उतारकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। यहां ओबीसी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।

धरसींवा

कांग्रेस ने विधायक अनीता योगेंद्र शर्मा का टिकट काटकर पूर्व राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा को उतारा है। उनके मुकाबले में भाजपा ने छत्तीसगढ़ी फिल्मों के सितारे पद्मश्री अनुज शर्मा की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश की है।

आरंग : भाजपा की घेरेबंदी में फंसे मंत्री शिव कुमार डहरिया

इस बार मंत्री शिवकुमार डहरिया की राह आसान नहीं है, क्योंकि भाजपा ने उनके खिलाफ सतनामी समाज के धर्मगुरु बालदास के पुत्र गुरु खुशवंत सिंह को मैदान में उतारा है। गुरु बालदास पहले कांग्रेस में थे। वह इसी साल भाजपा के पाले में आए और बेटे को टिकट दिलाने में भी सफल रहे। क्षेत्र में सतनामी मतदाताओं का अच्छा प्रभाव है।

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