बिलासपुर : हाईकोर्ट से एक कर्मचारी को 28 साल की लड़ाई के बाद न्याय मिला। हाईकोर्ट ने उसे हाईस्कूल बोर्ड में अंकित वास्तविक जन्मतिथि के अनुसार सारे लाभ देने का आदेश दिया है। इस कर्मचारी की जन्मतिथि विभाग ने दस्तावेजों में 10 साल पीछे दर्ज कर दी थी।
याचिकाकर्ता परमारथ की नियुक्ति वर्ष 1983 में चिरमिरी कोल माइंस में बतौर इलेक्ट्रिशियन हुई थी। उनकी जन्मतिथि विभागीय दस्तावेजों में गलत दर्ज कर दी गई। 1995 में पे स्लिप के जरिये उनको जानकारी हुई कि वास्तविक जन्मतिथि एक जनवरी 1965 की बजाय 21 अक्टूबर 1955 और 21 जुलाई 1955 दर्ज की गई है। इस तरह दो गलत तारीखें अलग-अलग दस्तावेजों में दर्ज थीं।
जानकारी होने के बाद उन्होंने जन्मतिथि में सुधार के लिए लगातार ऑफिस में आवेदन दिया। विभागीय अधिकारी भी अपने उच्च अधिकारियों को लिखित में इसकी सूचना देते रहे। इस बीच प्रबंधन ने 2012 में उनका आवेदन खारिज कर दिया। मगर इसकी जानकारी नहीं दी।
जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो कर्मचारी ने वर्ष 2013 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की। सुनवाई में एसईसीएल प्रबंधन ने आवेदन खारिज करने की जानकारी दी। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने यूपी हाईस्कूल बोर्ड से वेरिफिकेशन कराने को कहा। यह लंबित रहा और 2023 में यह याचिका खारिज हो गई।
इसके बाद एडवोकेट पवन श्रीवास्तव के माध्यम से डिवीजन बेंच में अपील की गई। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविन्द्र अग्रवाल की डीबी में सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के दावे को उचित मानते हुए एसईसीएल प्रबंधन को याचिकाकर्ता की जन्मतिथि हाईस्कूल केअनुसार दर्ज करने का निर्देश दिया। इसके अनुसार ही समस्त लाभ भी देने का आदेश अपने निर्णय में दिया है।