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वो दमदार एक्टर, जिस पर बुरी तरह भड़की कांग्रेस सरकार ने लगाया था बैन, भेजा था जेल

मुंबई : उत्पल दत्त अपने क्षेत्र के धुरंधर थे। वो कमाल के एक्टर थे, उम्दा डायरेक्टर भी थे। राजनीति को लेकर बोलने और लिखने में कभी पीछे नहीं हटते थे। मुखर होकर अपनी राय व्यक्त करते थे। उन्होंने बंगाली थिएटर में एक्टिंग की। 1949 में लिटिल थिएटर ग्रुप बनाया। अपने 40 साल के करियर में 100 से ज्यादा बंगाली और हिंदी फिल्मों में काम किया। उनके कई किरदार यादगार हैं।

‘गोलमाल’ फिल्म में उनके काम को कोई आज तक भूल नहीं पाया है। आइये उनकी बर्थ एनिवर्सिरी पर जानते हैं, उनके बारे में दिलचस्प बातें कि क्यों कांग्रेस सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया था। उन्होंने 1977 में देश में लगी इमरजेंसी पर तीन नाटक लिखे थे, लेकिन सरकार ने तीनों को बैन कर दिया था।

थिएटर को लेकर जुनून

उत्पल दत्त का जन्म 29 मार्च 1929 को बरीसाल में हुआ था। उनके पिता गिरिजारंजन दत्त थे। उन्होंने कलकत्ता (अब कोलकाता) यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर ऑनर्स में ग्रेजुएशन किया। हालांकि, वे मुख्य रूप से बंगाली थिएटर में एक्टिव थे, उन्होंने अपने करियर की शुरुआत अंग्रेजी रंगमंच से की थी। 1940 के दशक में एक टीनएज के रूप में उन्होंने अंग्रेजी थिएटर में अपना जुनून और क्राफ्ट विकसित किया, जिसके बाद 1947 में ‘द शेक्सपियरन’ की स्थापना हुई।

थिएटर ग्रुप

उत्पल अपने वामपंथी झुकाव के लिए जाने जाने वाले संगठन इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (IPTA) के संस्थापक सदस्य भी थे, लेकिन कुछ सालों के बाद इसे छोड़ दिया, जब उन्होंने अपना थिएटर ग्रुप शुरू किया। उन्होंने लिखा और निर्देशित किया, जिसे उन्होंने ‘एपिक थिएटर’ कहा, एक शब्द जिसे उन्होंने Bertolt Brecht से उधार लिया था, बंगाल में चर्चा और परिवर्तन लाने के लिए। 1948 में गठित उनकी ब्रेख्त सोसाइटी की अध्यक्षता सत्यजीत रे ने की थी। वह ग्रुप थिएटर आंदोलन के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों में से एक बन गए। इसी के साथ वो कोलकाता के साउथ प्वॉइंट स्कूल में इंग्लिश टीचर भी थे।

ऐसे हुई फिल्मों में एंट्री

जल्द ही उन्होंने अपनी मूल बंगाली की ओर रुख किया, शेक्सपियर की कई त्रासदियों और रूसी क्लासिकिस्टों की कृतियों का बंगाली में ट्रांसलेशन किया। 1954 में शुरू करते हुए, उन्होंने विवादास्पद बंगाली राजनीतिक नाटकों को लिखा और निर्देशित किया। इस बीच उन्होंने फिल्मों का रुख किया। फिल्ममेकर मधु बोस ने उन्हें देखा और Michael Madhusudan में लीड रोल ऑफर किया, जो क्रांतिकारि इंडियन कवि Michael Madhusudan Dutt पर बेस्ड थी।

कॉमेडी रोल में खूब हुए फेमस, विलेनगिरी भी की

उत्पल दत्त के कॉमिक रोल खूब फेमस हुए। उन्होंने ‘गुड्डी’, ‘गोलमाल’, ‘नरम गरम’, ‘रंग बिरंगी’, ‘शौकीन’ जैसी फिल्मों में यादगार कॉमेडी की। उन्हें नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया। उन्होंने खूब विलेनगिरी भी की। वो अमिताभ बच्चन की The Great Gambler में विलेन बने। इसके अलावा ‘इन्कलाब’, ‘बरसात की एक रात’ में भी विलेन का रोल प्ले किया।

जेल तक जाना पड़ा

उत्तपल, मार्क्सवादी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के एक सक्रिय समर्थक भी थे। उनका वामपंथी ‘रिवोल्यूशनरी थिएटर’ समकालीन बंगाली थिएटर में एक घटना थी। उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के पक्ष में कई नुक्कड़ नाटक किए। उन्हें 1965 में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस सरकार द्वारा जेल में डाल दिया गया था और कई महीनों तक हिरासत में रखा गया था, क्योंकि तत्कालीन राज्य सरकार को डर था कि उनके नाटक ‘कल्लोल’ पश्चिम बंगाल में सरकार विरोधी प्रदर्शनों को भड़का सकता है। यह नाटक मिनर्वा में उनका सबसे लंबा चलने वाला नाटक निकला। ये नाटक 1946 के रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह पर आधारित था। उन्होंने खूब लिखा। इसके साथ ही ‘मेघ’, ‘झार’ सहित कई फिल्मों का डायरेक्शन भी किया।

उत्पल की फैमिली

पर्सनल लाइफ की बात करें तो साल 1960 में उत्पल दत्त ने थिएटर और फिल्म एक्ट्रेस शोभा सेन से शादी की थी। कपल की बेटी हुई, जिसका नाम बिश्नुप्रिया दत्त रखा, जो दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में थिएटर एंड परफॉर्मेंस स्टडीज की प्रोफेसर हैं।

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