पुष्य नक्षत्र में चल रहे सूर्यदेव के गुरुवार को नक्षत्र परिवर्तन कर अश्लेषा में प्रवेश करने के साथ ही झमाझम वर्षा का दौर शुरू हो गया। शुक्रवार को शुक्र अस्त होने से रविवार से आसमान साफ हो सकता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अश्लेषा जलचर राशि होने के चलते एक बार फिर अच्छी वर्षा के योग बनते हैं और कुछ जगह अतिवृष्टि भी होती है। ज्योतिषाचार्य पं. रामगोविंद शास्त्री के अनुसार सूर्यदेव अश्लेषा नक्षत्र में प्रवेश कर 15 दिन तक इसी नक्षत्र में रहेंगे। इसके बाद फिर नक्षत्र परिवर्तन करके 18 अगस्त को मघा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे।
इस दौरान स्त्री-स्त्री योग बनेगा जो तेज और झमाझम वर्षा कराएगा। पं. शास्त्री के अनुसार पुनर्वसु, अश्लेषा और पुष्य नक्षत्र जलचर नक्षत्र कहलाते हैं। यानि इन नक्षत्रों में वर्षा अच्छी मानी जाती है, लेकिन यदि इन नक्षत्रों में स्त्री-स्त्री योग वनता है तो खंड वर्षा के योग बनते हैं।
सूर्य के नक्षत्र परिवर्तन का महत्व
हिंदू धर्म में सूर्य का नक्षत्र में प्रवेश का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यताएं हैं कि इस दौरान भगवान शंकर और भगवान विष्णु की पूजा करने से लाभ मिलता है। इस दौरान भगवान को खीर-पूरी और आम के फल का भोग लगाना उत्तम माना जाता है।
पं.शास्त्री के अनुसार गुरुवार व शुक्रवार को दिनभर वर्षा होने की मुख्य वजह सूर्य के अश्लेषा राशि में प्रवेश होना ही है। वर्षा के लिए जलचर नक्षत्र होते हैं। जो अतिवृष्टि के लिए उत्तरदायी होते हैं, लेकिन यदि इन नक्षत्रों में स्त्री—स्त्री योग होता है तो खंड वर्षा के योग बनते हैं।