अंबिकापुर : आठ नक्सलियों को अबूझमाड़ के घने जंगलों में मार गिराने में जिस फोर्स ने अपने जल शक्ति अभियान के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जिसकी चर्चा इस समय पूरे देश में हो रही है, उस फोर्स में एक नाम इंद्रकुमार सिवानी का है जिनका संबंध सरगुजा के बतौली शांतिपारा से है ।इस समय सिवानी की वीरता व साहस की चर्चा बतौली क्षेत्र में काफी हो रही है।
जल शक्ति आपरेशन पूरा हो गया है और 36 घंटे तक अनवरत यह अभियान चला। नक्सलियों के सबसे सुरक्षित क्षेत्र में घुसकर आठ नक्सलियों को मार गिराने का यह अभियान सफलतम अभियान में शुमार किया जा रहा है। इंद्र कुमार सिवानी इसी संयुक्त अभियान का बड़ा चेहरा है।बता दें कि नारायणपुर,बीजापुर जिले के सीमा में नक्सलियों के सबसे सुरक्षित क्षेत्र अबूझमाड़ में फोर्स ने आपरेशन जल शक्ति अभियान संचालित किया था। शुक्रवार को फोर्स ने वापस लौटते हुए भी एक नक्सली को मार गिराया था। नक्सलियों ने फोर्स को घेरने की कोशिश की थी।
जवानों ने जवाबी कार्रवाई की। जानकारी दी गई की अलग-अलग मुठभेड़ में आठ नक्सली मारे गए हैं। इनमें चार महिलाएं शामिल है। इस आपरेशन में तीन जिले बीजापुर ,दंतेवाड़ा और नारायणपुर के 800 जवान उतारे गए थे ।मौके से काफी मात्रा में हथियार और नक्सली सामग्री बरामद की गई थी ।इस महत्वपूर्ण आपरेशन में बतौली शांतिपारा निवासी इंद्रकुमार सिवानी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
बचपन से ही साहसी रहे हैं सिवानी
इंद्रकुमार सिवानी बतौली के शांतिपारा के रहने वाले हैं ।इनके एक छोटे भाई हैं ।प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल शांतिपारा और हायर सेकेंडरी स्कूल शांतिपारा में हुई है ।इसके बाद इनका चयन स्पेशल टास्क फोर्स में हुआ था। इस समय ये एसटीएफ में कंपनी कमांडर के पद पर सुकमा में पदस्थ हैं ।इंद्रकुमार ने मामले की जानकारी देते हुए बताया कि आपरेशन जल शक्ति एक संयुक्त अभियान था जिसके माध्यम से नक्सलियों को मार गिराने में सफलता प्राप्त हुई है।
वे बस्तर क्षेत्र में पिछले 12 वर्षों से तैनात है। उनकी टीम में 100 से ज्यादा जवान तैनात किए गए हैं जिनका नेतृत्व करने की जिम्मेदारी उनके ऊपर है। बस्तर में रिजर्व गार्ड और स्पेशल टास्क फॉर की टीम नक्सलियों के खात्मे के लिए तैयार की गई है ।हालिया आपरेशन जल शक्ति आपरेशन में इंद्रकुमार सिवानी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
दुर्गम जंगल में रहते हैं तैनात
कंपनी कमांडर एसटीएफ सुकमा इंद्रकुमार सिवानी ने बताया कि चार से पांच दिन का खाना पीठ में लादकर दुर्गम इलाकों, पहाड़ियों, घने जंगलों में नक्सलियों पर नजर रखना आसान काम नहीं है। बावजूद इसके किसी भी जवान का उत्साह कम नहीं होता। सिर्फ सूखा खाना और सीमित मात्रा में पानी पीठ में ढोकर हर पल नक्सलियों की गोली का जवाब देने सावधान रहना पड़ता है ।साल में एक या दो बार घर जाने की अनुमति मिलती है ।उन्होंने कहा कि लोग सुरक्षित घरों में सो सके। छत्तीसगढ़ अंचल का सुंदर घने जंगलों से बसा इलाका शांतिपूर्वक अपनी बाहें फैला सके। बस यही चाहत हर जवान की होती है और उसमें मैं भी शामिल हूं।