महाशिवरात्रि हिन्दू परंपरा का एक महापर्व है। यह त्योहार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। शिव जी का विवाह भी इस दिन माना हुआ था। शिवरात्रि पर शिवलिंग की पूजा विशेष पूजा की जाती हैं। उन्हें जल, दूध, दही, शक्कर, शहद, घी, भांग, पुष्प, धतूरा, चंदन, फल अर्पित किए जाते हैं। लेकिन सिंदूर, तुलसी, हल्दी और शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे क्या कारण है।
शिवलिंग पर क्यों नहीं चढ़ाते हैं सिंदूर
भगवान शिव का एक रूप संहार करने वाला है। ऐसी मान्यता है कि उनके इस रूप की वजह से उन्हें सिंदूर अर्पित नहीं किया जाता है। यह सिंदूर मां गौरी अपना मांग में सजाती है। सभी महिलाएं पति के लंबी आयु के लिए सिंदूर से मांग भरती हैं। भगवान शिव की पूजा के समय शिवलिंग पर बेलपत्र, भांग, धतूरा, श्रीफल आदि सामग्री चढ़ाई जाती हैं, लेकिन कभी भी सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता है।
शिवलिंग पर क्यों नही चढ़ाते हल्दी
हिंदू धर्म में हल्दी को अत्यंत शुद्ध और पवित्र माना गया है। धार्मिक पुस्तकों के अनुसार शिवलिंग पुरुष तत्व का प्रतीक माना गया है। जबकि हल्दी का संबंध स्त्रियों से होता है। यही कारण है कि भोलेनाथ को हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। बता दें कि शिव विवाह यानी शिवरात्रि के समय भी ऐसा नहीं किया जाता है।
शिवलिंग पर क्यों नहीं चढ़ाते तुलसी
पौराणिक कथाओं के अनुसार पिछले जन्म में तुलसी राक्षस कुल में जन्मी थीं। उनका नाम वृंदा था। वृंदा का विवाह दानव राज जलंधर से हुआ। जालंधर को अपनी पत्नी की भक्ति और विष्णु कवच की वजह से अमर होने की वरदान मिला हुआ था। एक बार जब जलंधर देवताओं से युद्ध कर रहा था तो वृंदा पूजा में बैठकर पति की जीत के लिए अनुष्ठान करने लगी। व्रत के प्रभाव से जलंधर हार नहीं रहा था। तब भगवान शिव ने उसका वध किया था। अपने पति की मृत्यु से वृंदा दुखी एवं क्रोधित होकर तुलसी ने शिवजी को ये श्राप दिया कि उनकी पूजा में कभी तुलसी पत्र का उपयोग नहीं किया जाएगा।
शिवलिंग पर शंख से नहीं चढ़ाते जल
शिवपुराण के अनुसार, शंखचूड़ एक महापराक्रमी दैत्य था, जिसका वध स्वयं भगवान शिव ने किया था। इसलिए महाशिवरात्रि पर कभी शंख से शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ाया जाता है।