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सौर भूकंप के अध्ययन पर वैज्ञानिक ने दिया जोर, इससे क्या हो सकता है नुकसान, जानें इस बारे में सबकुछ

sour mandal

बंगलरु : चंद्रयान-3 की सफलता के बाद इसरो का सौर मिशन आदित्य-एल1 लॉन्चिंग के लिए तैयार है। भारत के सौर मिशन की लॉन्चिंग से पहले एक शीर्ष वैज्ञानिक ने सुझाव दिया है कि सौर भूकंपों का अध्ययन करने के लिए 24 घंटे के आधार पर सूर्य की निगरानी जरूरी है, क्योंकि यह पृथ्वी के भू-चुंबकीय क्षेत्रों को बदल सकती है। सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को शनिवार सुबह 11.50 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट  से लॉन्च किया जाएगा।

‘पृथ्वी की तरह सूर्य की सतह पर भी आते हैं भूकंप’

सूर्य के अध्ययन की आवश्यकता के बारे में बताते हुए भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के प्रोफेसर और प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. आर रमेश ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि जिस तरह पृथ्वी पर भूकंप आते हैं, उसी तरह सूर्य की सतह पर सौर भूकंप भी आते हैं, जिन्हें कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) कहा जाता है। उन्होंने कहा, इस प्रक्रिया में लाखों-करोड़ों टन सौर सामग्री को अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में फेंक दिया जाता है। उन्होंने आगे कहा, ये सीएमई लगभग 3,000 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से यात्रा कर सकते हैं।

डॉ. रमेश ने बताया, कुछ सीएमई को पृथ्वी की ओर भी निर्देशित किया जा सकता है और सबसे तेज सीएमई लगभग 15 घंटे में पृथ्वी के निकट पहुंच सकता है। यह पूछे जाने पर कि यह मिशन अन्य समान कार्यक्रमों से अलग क्यों है? उन्होंने कहा, ईएसए (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी) और नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) ने पहले भी इसी तरह के मिशन लॉन्च किए हैं, लेकिन आदित्य एल1 मिशन दो मुख्य पहलुओं में अद्वितीय होगा क्योंकि हम सौर कोरोना का निरीक्षण उस स्थान से कर सकेंगे जहां से यह लगभग शुरू होता है। इसके अलावा हम सौर वायुमंडल में चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव का भी निरीक्षण कर सकेंगे, जो कोरोनल मास इजेक्शन या सौर भूकंप का कारण है।

सीएमई से होने वाले खतरे के बारे में दी जानकारी

उन्होंने कहा, कभी-कभी ये सीएमई सैटेलाइट को ‘खत्म करके’ (निगल जाना) उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। सीएमई से डिस्चार्ज किए गए कण प्रवाह के कारण सैटेलाइट पर मौजूद सभी इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण खराब हो सकते हैं। डॉ. रमेश ने कहा, ये सीएमई सभी तरफ से पृथ्वी तक आते हैं। उदाहरण के लिए, 1989 में जब सौर वायुमंडल में भारी विस्फोट हुआ था, तब कनाडा के क्यूबेक शहर में लगभग 72 घंटे तक बिजली बाधित रही थी; वहीं 2017 में सीएमई की वजह से स्विट्जरलैंड का ज्यूरिख एयरपोर्ट करीब 14 से 15 घंटे तक प्रभावित हुआ था।

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