नई दिल्ली : इस्राइल पर हमास के हमले के बाद मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक तनाव परवान पर पहुंच गया है। इस बीच कच्चे तेल की कीमतें 4.5 प्रतिशत उछलकर 87 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं हैं। यह तेल की कीमतों में पिछले हफ्ते आई आठ प्रतिशत की गिरावट के उलट है। इस्राइल पर हमास के हमले ने वैश्विक तेल बाजार में खतरे की घंटी बजा दी है। ऐसा प्रमुख तेल उत्पादक और निर्यात केंद्र के रूप में इस क्षेत्र की महत्ता के कारण है।
हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि इस्राइल पर हमले का कच्चे तेल की आपूर्ति पर सीधा असर पड़ने की आशंका नहीं है। इस्राइल, क्षेत्रीय उथल-पुथल का सामना करने के बावजूद, 300,000 बैरल प्रति दिन (बीपीडी) की संयुक्त क्षमता के साथ दो तेल रिफाइनरियों को जारी रखे हुए है, जबकि फलस्तीन तेल का उत्पादन नहीं करता है। इसलिए, इस क्षेत्र में तेल उत्पादन और वितरण में तत्काल व्यवधान सीमित सह सकता है।
भू-राजनीतिक तनाव में वृद्धि से बाजार की चिंता बढ़ी
इस बीच, भू-राजनीतिक तनाव में और वृद्धि की संभावनाओं के कारण बाजार में चिंता बढ़ी है। यह चिंता खासकर उन रिपोर्ट्स के कारण है जिसमें कहा गया है कि इस्राइल पर हमले में ईरान की भागीदारी है। हालांकि दूसरी ओर, बहरीन, इराक, कुवैत, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब सहित कई प्रमुख तेल उत्पादक देशों ने वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर करने के लिए तेल उत्पादन को समायोजित रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है। ये राष्ट्र किसी भी आपूर्ति व्यवधान को कम करने और भू-राजनीतिक अनिश्चितता के समय में तेल की कीमतें स्थिर बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
लंबे समय तक खिंची लड़ाई तो बढ़ सकती है परेशानी
तेल की कीमतों में अचानक वृद्धि के लिए भू-राजनीतिक तनाव के अलावे और भी कारण हो सकते हैं। यार्देनी रिसर्च के अनुसार, “बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि संकट अल्पकालिक है या इस्राइल और ईरान के बीच एक बड़ा युद्ध होता है।” वांडा इनसाइट्स की वंदना हरि के अनुसार, “इजरायल और फलस्तीन प्रमुख तेल उत्पादक देश नहीं हैं, लेकिन यह संघर्ष एक व्यापक प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र में हो रहा है और यह आगे और बढ़ सकता है।”
सोने की कीमतों में भी एक प्रतिशत से अधिक का उछाल
सोने की कीमतें भी सोमवार को 1% से अधिक बढ़ गईं इजरायल और हमास बलों के बीच नाटकीय झड़पों ने व्यापक मध्य पूर्व संघर्ष का खतरा बढ़ा दिया। बाजार में बुलियन जैसी सुरक्षित संपत्तियों की मांग में तेजी आने से कीमतों में उछाल दर्ज की गई है।