रक्षाबंधन : न राखी, न घर… फर्ज की जंजीरों में बंधा सुकमा के ‘वीरों’ का रक्षाबंधन

सुकमा : भाई-बहन के रिश्ते का वो त्योहार, जब देशभर में बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और बदले में रक्षा का वचन पाती हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के अंदरूनी इलाकों में तैनात सुरक्षाबल के जवानों के लिए ये दिन भी आम दिनों जैसा ही होता है- तनाव, ऑपरेशन और बंदूक की गूंज के बीच बीतता हुआ.
नक्सल प्रभावित इन इलाकों में तैनात जवान घर से हजारों किलोमीटर दूर, अपनों से बिछड़े रहते हैं, लेकिन भावनाओं की डोर इतनी मजबूत है कि वो न कभी टूटी है और न ही कमजोर हुई. इन जवानों के लिए रक्षाबंधन सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि फर्ज और भावनाओं की परीक्षा भी है. छुट्टी न मिलना, परिवार से दूर रहना, खतरे के बीच तैनात रहना, ये सब आम बात हो चुकी है. लेकिन जब उनसे पूछा जाए कि क्या अफसोस होता है? तो मुस्कुराते हुए जवाब आता है- जब देश सुरक्षित है, तो हमारी राखी भी महफूज है. सुकमा जिले के पूवर्ती, टेकलगुड़ेम, सिलगेर, रायगुड़ेम जैसे घोर नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात सीआरपीएफ और जिला बल के जवानों ने अपनी-अपनी कहानी बताई.
20 साल से नहीं मना पाया रक्षाबंधन
नक्सलियों के सबसे खूंखार नेता माड़वी हिड़मा के गांव पूवर्ती में तैनात सीआरपीएफ के 44 वर्षीय राजू दत्ता ने बताया कि उन्हें 20 साल हो गए बहन से राखी बंधवाए हुए. हर बार सोचते हैं कि इस बार जाएंगे, लेकिन रक्षाबंधन से पहले ही पोस्टिंग ऐसी जगह आ जाती है, जहां छुट्टी मिलना नामुमकिन होता है. उनकी आवाज में कोई शिकायत नहीं है, बस फर्ज का ठहराव है. उन्होंने बताया कि रक्षाबंधन के दिन स्कूल के बच्चे और गांव की महिलाएं के साथ त्योहार मना लेते हैं.
18 साल बाद मिली एक छुट्टी, वीडियो कॉल पर बात होती है
टेकलगुड़ेम में तैनात बिहार के छपरा जिले के रहने वाले सीआरपीएफ के जवान मुकेश सिंह ने बताया कि वह 18 साल में एक बार सिर्फ रक्षाबंधन पर घर जा पाए. उन्होंने महसूस किया कि त्योहार सिर्फ मिठाइयों से नहीं, अपनों की मौजूदगी से बनता है. उसके बाद से कभी रक्षाबंधन में घर नहीं जा पाए हैं. जहां पोस्टिंग होती है उस इलाके की महिलाएं राखी बांध जाती हैं.
छत्तीसगढ़ की बहनों को सलाम, कभी घर की कमी महसूस नहीं होने दी
टेकलगुड़ेम कैंप में तैनात जम्मू के रहने वाले महेंद्र सिंह देर शाम सर्चिंग ऑपरेशन से लौटे. उन्होंने कहा- ‘राखी के इस पवित्र त्योहार पर जब घर की बहनें दूर हैं, तब छत्तीसगढ़ की मिट्टी की बेटियों ने वो खालीपन कभी महसूस नहीं होने दिया. देश की हर बहन की रक्षा करना हमारा फर्ज है. दो दिन पहले ही बहन ने कॉल किया था. राखी त्योहार को लेकर बधाई दी. घर वालों को भी पता है कि जिस इलाके में पोस्टिंग है वहां कभी भी इमरजेंसी पर जाना पड़ सकता है. इसलिए त्योहार से पहले ही बात हो गई.’
अब याद नहीं, कब आखिरी बार घर गए थे
यूपी के बलिया जिले के रहने वाले विनोद यादव ने बताया कि उन्हें अब याद भी नहीं, कब आखिरी बार घर पर राखी मनाई थी. लेकिन बहन हर साल राखी के दिन वीडियो कॉल या नार्मल कॉल करती है. नेटवर्क में रहने से बात हो जाती नहीं तो फिर जब नेटवर्क मिले तक बात होती है. सर्विस के करीब 11 साल हो गए हैं. देश की रक्षा करना ही सबसे बड़ा फर्ज है.
एक जवान ने बताया कि कई बार तो ऐसे हालात बन जाते हैं कि त्योहार के दिन मुठभेड़ हो जाती है… राखी जेब में रखी रह जाती है और हाथ में बंदूक होती है। दो साल पहले रक्षाबंधन के दिन गश्त पर निकले थे। सुबह बहन का वीडियो कॉल आया था, कहा था राखी बांध लेना, दोपहर होते-होते मुठभेड़ हो गई। तीन घंटे गोलियां चलती रहीं।