मॉस्को: भारत रूस को ब्रह्मोस मिसाइल बेचने पर विचार कर रहा है। ये लंबे समय के दो रणनीतिक सहयोगियों के बीच भूमिका में बड़ा बदलाव है, क्योंकि अभी तक भारत ही रूस से हथियार लेता था। दोनों देशों ने मिल कर इस महाविनाशक हथियार को विकसित किया है। ब्रह्मोस एयरोस्पेस के सीईओ और प्रबंध निदेशक अतुल दिनकर राणे के मुताबिक उनकी कंपनी हवा से लॉन्च होने वाली ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के लिए रूस को एक संभावित बाजार के रूप में देखती है। उन्होंने दावा किया कि रूस के पास इस लेवल का कोई भी हथियार वर्तमान में नहीं है।
उन्होंने कहा कि अगर रूस ने इसे पहले खरीदा होता तो उनके पास मौजूदा स्थिति (यूक्रेन युद्ध) में उपयोग करने के लिए बहुत सी चीजें होती। उन्होंने कहा, ‘यूरोप में अभी जो चल रहा है उसके खत्म होने के बाद हमें रूस से कुछ ऑर्डर मिल सकते हैं, खासकर हवा से लॉन्च होने वाले ब्रह्मोस के लिए।’ रूस ब्रह्मोस का इस्तेमाल अपनी पी-800 ओनिक्स मिसाइल की तरह कर सकता है। ब्रह्ममोस से पहले सोवियत समय में पी-800 का निर्माण हुआ था। पी-800 एक जहाज रोधी मिसाइल के रूप में डिजाइन किया गया है और इसका इस्तेमाल सीरिया और यूक्रेन में जमीनी टार्गेट के लिए किया गया।
रूस की क्या है मजबूरी
ब्रह्मोस और ओनिक्स का प्रदर्शन लगभग समान हैं। रूस के रक्षा उद्योग में कम फंडिंग, भ्रष्टाचार, निर्माण में देरी और पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण होने वाली समस्याएं रूस को भारत से ब्रह्मोस खरीदने के लिए मजबूर कर सकती हैं। अगर रूस यूक्रेन में ब्रह्मोस का इस्तेमाल करता है तो पश्चिमी देशों के पास मिसाइल का मुकाबला करने के लिए कोई समान हथियार नहीं होगा। पश्चिम की क्रूज मिसाइल स्टॉर्म शैडो सबसोनिक डिजाइन की हैं, जो हवाई सुरक्षा को भेदने के लिए स्टील्थ और गतिशीलता का लाभ उठाती है।
रूस की मिसाइल का रहा है खराब प्रदर्शन
हालांकि ब्रह्मोस का यूक्रेन युद्ध में कोई रणनीतिक प्रभाव नहीं हो सकता। इससे सिर्फ पश्चिमी देश यूक्रेन को और भी घातक हथियार सप्लाई करने के लिए प्रेरित होते। यूक्रेन में रूस की किंजल मिसाइल का खराब प्रदर्शन देखने को मिला है, जिसके कारण रूस के लिए भारत से ब्रह्मोस खरीदना मजबूरी हो सकता है। मॉडर्न वॉर इंस्टीट्यूट के एक लेख के मुताबिक किंजल मिसाइल एक ठोस ईंधन वाले रॉकेट मोटर का इस्तेमाल करती है, जिसे उड़ान के दौरान धीमा या खत्म नहीं किया जा सकता।