मुंबई : ‘महाभारत’ में दुर्योधन की भूमिका निभा चुके पुनीत इस्सर ने इस किरदार से जीवन के कई सबक सीखे। यही वजह है कि अपने शो ‘वंशज’ में ‘गीता’ के श्लोक पढ़ने वाले एक्टर उसी के बताए रास्ते पर जिंदगी का सफर तय कर रहे हैं। गीता को जिंदगी जीने की किताब मानने वाले एक्टर स्कूलों में अनिवार्य रूप से इसको पढ़ाई में शामिल करने पर भी जोर देते हैं।
क्लीष्ट हिंदी भी बड़ी सरलता और सहजता से बोलेने में माहिर कलाकार का मानना है कि आज के ज्यादा अंग्रेजी बोलने वाले युवा हिंदी में बहुत कमजोर हैं। देश में हिन्दी के पिछड़ने और अंग्रेजी के बढ़ने की वजह वो गुलामी और भारतीयों के खंडन को मानते हैं। वह चाहते हैं कि नई और आने वाली पीढ़ी को बताया जाए कि आखिर हिंदी कितनी धनी है।
गुलामी और भारतीयों के खंडन की वजह से अंग्रेजी हावी है
भारत में अंग्रेजी के हावी होने की वजह हमारी गुलामी है। इस कारण अंग्रेजी भाषा का प्रभाव रह गया। अंग्रेजों ने हमसे कहा था कि तुम्हारा साहित्य, संस्कृति, पौराणिक कथाएं सब झूठी हैं। इसके पीछे उनका मकसद हमें गुलाम बनाकर शासन करना था। उसके बाद स्वतंत्रता के जो 70 वर्ष थे, उसमें भी हमें मुगालते में रखा गया कि साहब!, दुनिया में आपको उन्नति करनी है तो अंग्रेजी जाननी जरूरी है। मैं यह नहीं कहता कि अंग्रेजी आवश्यक नहीं है। यह जरूरी है क्योंकि इसे दुनियाभर की भाषा कहा गया है। फिर भी क्या जर्मन, फ्रेंच अंग्रेजी बोलते हैं? जरूरत पर बोलते होंगे, नहीं तो प्राथमिकता वो अपनी भाषा को ही देते हैं।
उन्होंने भी तो तरक्की की है। अंग्रेजी आनी चाहिए, लेकिन अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए। देखिए, हमें कितना गलत सिखाया गया कि तमिल दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। सबसे पुरानी भाषा संस्कृत है। यह अंग्रेजों की लोगों, राज्यों, संप्रदायों को बांटने की नीति थी। आपको पता है कि ये भी झूठ बोला गया कि अशोक ने कलिंग के युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपनाया था। अब पता चलता है कि वह तो कलिंग के युद्ध से तीन साल पहले बौद्ध बन चुके थे। पिछले 70 वर्षों में हमें झूठ सिखाया गया। जानबूझकर हमारा खंडन किया गया, ताकि हम अपनी भाषा पर भरोसा ना कर सकें। इसी वजह से हिंदी को लेकर स्वाभिमान समाप्त हो गया।
हिंदी का स्वर विज्ञान सबसे कमाल का
मुझे लगता है कि हमारी देवनागिरी लिपि है, वह सबसे वैज्ञानिक है। अंग्रेजी छोड़िए उर्दू में भी खामिया हैं। उर्दू में आधा शब्द नहीं है। फिल्मों के लिहाज से देखें तो 1947 में भारत के बंटवारे के बाद जो कलाकार आए, वे उर्दू प्रधान थे। आपने देखा होगा कि राजकपूर साहब ने फिल्मों में हिंदी का खूब इस्तेमाल किया क्योंकि बाकियों को ये भाषा आती नहीं थी। बाद में जब दूरदर्शन पर रामायण, महाभारत स्पष्ट और असली हिंदी में आई तो लोगों को लगा कि ये तो कमाल की भाषा है। हिं
दी के स्वर विज्ञान ऐसे हैं कि जिस तरह और जैसा आप बोलते हैं, ठीक वैसा ही लिखते भी हैं। ये हमारी भाषा की खासियत है। मैंने जयद्रथ वध, दिनकरजी की रश्मिरथी, धर्मवीर भारती का अंधायुग पढ़ा है तो बहुत कुछ जानता हूं। हालांकि, हिंदी के साथ क्षेत्रीय भाषा को भी तवज्जो देनी चाहिए। लोगों को अपने यहां की भाषा अवश्य आनी चाहिए क्योंकि वह भी उनकी मातृभाषा है। देखिए, हिंदी राष्ट्रभाषा है, जो देश को जोड़ती है।