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आईएमएफ से कर्ज दिलाने के लिए पाकिस्तान ने अमेरिका के आगे जोड़े हाथ

इस्लामाबाद : बढ़ती आर्थिक मुसीबत के बीच पाकिस्तान ने एक बार फिर से अमेरिका के आगे हाथ पसारे हैं। उसने अमेरिकी अधिकारियों से गुजारिश की है कि वे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) को पाकिस्तान को तुरंत कर्ज देने के लिए मनाएं। अभी तक आईएमएफ अपनी कड़ी शर्तों पर अड़ा हुआ है। जबकि पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार गिरता जा रहा है।

गुरुवार को विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया कि अब पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 3.7 बिलियन डॉलर की रकम बची है। उन्होंने ध्यान दिलाया है कि विदेशी मुद्रा भंडार के 1.8 बिलियन डॉलर तक गिरने के बाद श्रीलंका ने खुद को डिफॉल्टर (कर्ज चुकाने में अक्षम) घोषित कर दिया था।

अखबार द न्यूज में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशहाक डार ने यहां आए अमेरिका के उप वित्त मंत्री रॉबर्ट केपरोथ से विशेष अनुरोध किया। केपरोथ अमेरिकी वित्त मंत्रालय में दक्षिण एशिया संबंधी मामलों के प्रभावी हैं। डार ने उनसे आईएमएफ में अमेरिका के विशेष प्रभाव का इस्तेमाल करने की गुजारिश की।

समझा जाता है कि पाकिस्तान में पैदा हो रही इमरजेंसी जैसी हालत को देखते हुए अमेरिका ने पहल की है। गुरुवार रात को खबर आई कि आईएमएफ पाकिस्तान की स्थिति की समीक्षा करने के लिए अपना दल भेजने पर राजी हो गया है। ये दल ऋण जारी होने से पहले पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ नौवीं समीक्षा बैठक करेगा।

पाकिस्तान स्थित आईएमएफ प्रतिनिधि एस्टर पेरेज ने अखबार द न्यूज से बातचीत में कहा- ‘पाकिस्तानी अधिकारियों के अनुरोध पर आईएमएफ का एक दल 31 जनवरी से नौ फरवरी तक पाकिस्तान का दौरा करेगा। इस दौरान नौवीं समीक्षा के तहत वार्ताओं को जारी रखा जाएगा।’ पेरेज ने कहा- ‘आईएमएफ का दल उन नीतियों पर ध्यान केंद्रित करेगा, जो घरेलू और बाहरी वित्तीय स्थिरता बहाल करने के लिए जरूरी हैं।’

सरकारी सूत्रों ने पाकिस्तानी मीडिया को बताया है कि आईएमएफ की मांग पर पाकिस्तान सरकार ने इस हफ्ते जरूरी सूचनाएं उसे भेजी हैं। इसके बावजूद अभी तक आईएमएफ ने अपनी सख्त शर्तों में रियायत देने का कोई संकेत नहीं दिया है। सूत्रों के मुताबिक विदेशी विनिमय दर तय करने का सवाल दोनों पक्षों के बीच मतभेद का एक बड़ा मसला बना हुआ है। आईएमएफ का कहना है कि पाकिस्तान कृत्रिम ढंग से विनिमय दर तय करे, यह उसे बिल्कुल मंजूर नहीं है।

अनुमान है कि आईएमएफ के दल की यात्रा के दौरान दोनों पक्षों में कुछ सहमति बन सकती है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कुछ रोज पहले ही कहा था कि उनकी सरकार आईएमएफ की सभी शर्तों को पूरा करेगी। लेकिन यह विश्लेषकों का कहना है कि आईएमएफ ने इतनी कड़ी शर्तें लगा रखी हैं, जिन्हें पूरा करना सरकार के लिए आसान नहीं है। ऐसा करने पर सत्ताधारी गठबंधन को महंगी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। आईएमएफ की शर्तों को मानने का मतलब देश में महंगाई में तेज बढ़ोतरी होगी। जबकि पाकिस्तान के लोग महंगाई और जरूरी चीजों के अभाव के कारण पहले से ही बड़ी मुसीबत का सामना कर रहे हैं।

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