आर्टिकल 370 पर सीजेआई ने 1957 पर कही बड़ी बात, बोले- संवैधानिक उल्लघंन पाया तो देंगे दखल

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में 1957 के बाद भारतीय संविधान के प्रावधानों को लागू करने की अनुमति देने से संबंधित कई संवैधानिक आदेशों को जारी करने को लेकर सवाल पूछे। सुप्रीम कोर्ट 1957 से 6 अगस्त, 2019 तक पारित संविधान (जम्मू-कश्मीर में लागू) संशोधन आदेशों का जिक्र कर रही थी। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे की दलील पर आश्चर्य व्यक्त किया कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 का समय पूरा हो गया था और उसने अपना उद्देश्य हासिल कर लिया था।

वकीलों की दलीलें

कपिल सिब्बल और गोपाल सुब्रमण्यम सहित अन्य वरिष्ठ वकीलों के विपरीत दवे ने दलील दी कि अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से स्थायी नहीं माना जा सकता है और 1957 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद यह जारी रहा। याचिकाकर्ता रिफत आरा बट की ओर से पेश हुए वकील दवे ने कहा, ‘‘मैं पूरे आदर के साथ यह कहना चाहता हूं कि अनुच्छेद 370 की अवधि पूरी हो चुकी है। इसने अपना मकसद पूरा कर लिया है। अनुच्छेद 370 (1) अब तक बचा हुआ है क्योंकि अगर कल को संविधान में संशोधन किया जाता है और एक नया अनुच्छेद डाला जाता है, जिसे हम जम्मू-कश्मीर पर भी लागू करना चाहेंगे…तो इस सीमित सीमा तक अनुच्छेद 370 (1) जरूरी हो सकता है।”

चीफ जस्टिस ने पूछे सवाल

चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने वकील दवे से पूछा, ‘‘अगर संविधान सभा ने जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए अपना कार्य पूरा कर लिया था और अनुच्छेद 370 ने भी अपना कार्य किया तथा अपना उद्देश्य प्राप्त कर लिया, तो फिर 1957 के बाद संवैधानिक आदेश जारी क्यों किए गए।” पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस सूर्य कांत भी थे।

दवे ने पीठ से कहा कि अगर जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने भारत के साथ रहने का फैसला किया था तो फिर इस फैसले को बदला नहीं जा सकता। उन्होंने कहा, ‘‘इस पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता। जहां तक अनुच्छेद 370 (3) का सवाल है तो राष्ट्रपति 1954 में (भारतीय संविधान के अधिकांश प्रावधानों को लागू करने वाले संविधान आदेश जारी होने के बाद) कार्यकारी अधिकारी बन गए।”

केंद्र के 5 अगस्त, 2019 के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सातवें दिन की सुनवाई के दौरान दवे ने कहा कि सिर्फ अनुच्छेद 370 (1) बना रहा और समय समय पर संविधान में संशोधन कर उसकी समय सीमा में विस्तार किया जाता रहा। अनुच्छेद 370 में विभिन्न अपवादों का जिक्र करते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने दवे से कहा, ‘‘तो आपका कहना है कि संविधान सभा के अपना कार्य पूरा करते ही अनुच्छेद 370 का भी कार्य पूरा हो गया।

लेकिन यह कम से कम संवैधानिक कार्य से मिथ्या ही साबित होता है, क्योंकि 1957 के बाद भी ऐसे आदेश जारी किए गए थे और जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में संविधान के प्रावधानों को बाद में संशोधित किया गया था। यानी वास्तव में कहें तो अनुच्छेद 370 उसके बाद भी जारी रहा था।” उन्होंने कहा कि इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि अनुच्छेद 370 ने अपना जीवन पूरा कर लिया था और इस अस्थायी प्रावधान ने वास्तव में भारतीय संवैधानिक ढांचे में स्थायित्व की स्थिति ग्रहण कर ली थी।

22 अगस्त को फिर होगी सुनवाई

चीफ जस्टिस ने वरिष्ठ वकील से कहा, ‘‘ऐसे में फिर 1958 के बाद से क्रमिक रूप से कोई संवैधानिक आदेश जारी होने का सवाल ही नहीं उठता।” दवे ने कहा कि अनुच्छेद 370 का खंड 3 केवल अनुच्छेद 370 के संपूर्ण प्रावधान को जारी रखने के संबंध में है और चूंकि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा भारत का हिस्सा बनने के लिए सहमत हो गई और इसलिए यह एक स्थायी निर्णय है। पीठ ने कहा कि दवे की दलीलें विचार करने योग्य हैं। अब इस मामले में 22 अगस्त को सुनवाई होगी। पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील को 22 अगस्त तक अपनी दलीलें पूरी करने को कहा जिसके बाद वह केंद्र की दलीलों को सुनेगी।

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