रायपुर : राजधानी रायपुर में आत्मसर्पित नक्सलियों और पुलिस के मुखबिरों ने पत्रकारों से चर्चा कर कहा है कि नक्सलियों के आत्मसमर्पण के लिए बनाई गई सरकारी योजना का सही तरीके से लाभ उन्हें नहीं मिल पा रहा है। इस योजना में हमें नौकरी देने की बात कही गई थी, लेकिन कई लोगों को अब तक नहीं मिली है।
इस संबंध में बिलासपुर हाई कोर्ट ने भी नौकरी देने का आदेश भी दिया है। बावजूद इसके उस पर भी अमल नहीं किया गया। उन्होंने सरकार से आत्मसर्पित नक्सलियों और पुलिस के मुखबिरों की समस्याओं के समाधान के लिए आयोग बनाने की मांग की।
चेहरे पर गमछा बांधकर पत्रकारों से चर्चा करते हुए आत्मसमर्पित नक्सलियों ने बताया कि वर्ष 2001 में छत्तीसगढ़ सरकार पुलिस विभाग के साथ मिलकर नक्सल पीड़ित पुनर्वास योजना लेकर आई थी, जिसमें बड़ी संख्या में नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराने का उद्देश्य था। अब योजना को लेकर आत्मसमर्पित नक्सलियों और मुखबिरी का काम कर चुके लोगों ने आरोप लगाया है कि उन्हें इन योजनाओं का सही तरीके से लाभ नहीं मिल रहा है।
जान बचाने के लिए भटक रहे
आत्मसमर्पित नक्सलियों ने बताया कि हजारों आदिवासी परिवारों के युवकों को विशेष पुलिस अधिकारी और गोपनीय सैनिक बनाया गया, लेकिन कुछ महीने और साल तक उन्हें अपने विभाग में काम करवा कर निकाल दिया गया। उनकी ट्रेनिंग भी हुई। कुछ को सहायक आरक्षक बना दिया गया और कुछ लोगों को भर्ती करके बाद में बाहर निकाल दिया गया है। ऐसे लोग आज अपनी जान बचाते हुए इधर-उधर भटक रहे हैं। उन्हें लगातार नक्सलियों से खतरा बना हुआ है।
उनका कहना है कि नक्सलियों से पीड़ित कई ऐसे परिवार हैं, जो आत्मसर्पण करना चाहते हैं, लेकिन सरकारी योजनाओं का उन्हें सही से लाभ नहीं मिलने के कारण वे पीछे हट जाते हैं। इसी बात का फायदा उठाकर बाहर से आए हुए नक्सली छत्तीसगढ़ के भोले-भाले आदिवासियों को फंसाकर गैर कानूनी काम करवा रहे हैं।
ध्यान दे सरकार
आत्मसर्पित नक्सलियों ने कहा कि देश हित के लिए पुलिस का मुखबिरी करना अच्छी बात है, लेकिन मुखबिरों के साथ जो हो रहा है, उसमें शासन को ध्यान देकर न्याय देना होगा। उन्होंने नक्सल प्रभावित जिलों के लोगों से आग्रह भी किया है कि सरकार लगातार विकास के काम कर रही है, सड़कें, स्कूल और अस्पताल बना रही है, जिन्हें नक्सली नुकसान पहुंचा देते हैं। हमें उनका साथ नहीं देना चाहिए। इससे छत्तीसगढ़ में शांति आएगी।