MP News : अब खतरे में इंदौर का नमकीन उद्योग, व्यापारी बोले- बंद करनी पड़ेगी फैक्ट्रियां

इंदौर। इंदौर को पहचान देने वाला नमकीन उद्योग खुद को खतरे में महसूस कर रहा है। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल के मनमानी फरमान से यह स्थिति बनी है। उद्योगों को आदेश दिया गया है कि वे अपने यहां उपयोग किए जा रहे ईंधन को बदल दें।

कोयला, बायो कोल जैसे ईंधन का उपयोग बंद कर सिर्फ सीएनजी-पीएनजी का उपयोग करें। अनोखी बात ये कि नियम सिर्फ इंदौर के उद्योगों पर थोपा जा रहा है। नमकीन इंडस्ट्री ने कहा कि आदेश का पालन हुआ तो या तो बड़े उद्योग बंद हो जाएंगे या उन्हें इंदौर से पलायन को मजबूर होना पड़ेगा।

छह महीने में सीएनजी या एलपीजी का उपयोग शुरू करें

दिसंबर के दूसरे और तीसरे सप्ताह में शहर के उद्योगों को क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के दफ्तर से नोटिस पहुंचा है। उद्योगों को लिखित निर्देश दिए हैं कि छह माह के भीतर ही वे सीएनजी, पीएनजी या एलपीजी का उपयोग शुरू करें।

साथ ही 15 दिनों के भीतर अपने बायलर में बदलाव करने को लेकर एक्शन प्लान भी तैयार कर मंडल को भेजें। मौजूदा नमकीन और कन्फेक्शनरी उद्योग अपने उत्पादों के निर्माण के लिए कोयला या बायो कोल का इस्तेमाल करता है।

तीन गुना महंगी पड़ रही पीएनजी

बायो कोल असल में पराली और एग्री वेस्ट से बना ईंधन होता है। मप्र मिठाई नमकीन निर्माता-विक्रेता एसोसिएशन के अनुसार पीएनजी से उद्योग चलाना संभव ही नहीं है। अन्य ईंधन के मुकाबले यह तीन गुना महंगी पड़ रही है।

उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी

मप्र सरकार पीएनजी पर 14 प्रतिशत वैट लेती है, जिसका टैक्स क्रेडिट भी नहीं मिलता। गैस की उपलब्धता कम है और इससे जरूरी तापमान हासिल करने में भी ज्यादा ईंधन लगता है। ऐसे में इंदौर के उद्योग जो नमकीन बनाएंगे उसकी उत्पादन लागत बढ़ जाएगी।

इसके बाद यहां के उद्योग अन्य प्रदेशों के उद्योगों से तो क्या भोपाल-ग्वालियर के उद्योगों से भी प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकेंगे, क्योंकि वे हमसे सस्ता उत्पाद देने लगेंगे।

उन पर ईंधन को लेकर कोई बाध्यता नहीं है। हर उद्योग से निकलने वाले उत्सर्जन की निगरानी खुद प्रदूषण नियंत्रण विभाग करता है। उद्योगों में विभाग पहले ही बायलर पर बैक फिल्टर और कार्बन कलेक्टर तक लगवा चुका है।

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