आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य का कर्तव्य है कि वह परिस्थितियों और कार्य की सफलता की संभावना को समझकर कार्य प्रारंभ करे। चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो व्यक्ति देश, काल और परिस्थिति के अनुसार काम नहीं करता है, तो उसे सफलता नहीं मिलती है। इसलिए काम शुरू करने से पहले व्यक्ति को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि कार्य की सफलता की कितनी संभावना है।
दैवहीनं कार्यं सुसाध्यमपि दुःसाध्यं भवति
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि यदि भाग्य प्रतिकूल हो तो आसानी से सिद्ध होने वाला कार्य भी कठिन लगने लगता है। ऐसे में व्यक्ति का कर्तव्य यह है कि वह अपने पुरुषार्थ से उस कार्य को सिद्ध करने का प्रयत्न करे, क्योंकि उद्यमी पुरुष पर ही देवी लक्ष्मी की कृपा बरसती है। इस संबंध में आचार्य चाणक्य ने लिखा है कि ‘दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति ।’
प्रतिकूल स्थितियों की बात तो कायर पुरुष करते हैं। उद्यमी पुरुष अपने परिश्रम से परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेते हैं। पुरुषार्थ के बल पर इंसान ने संसार में ऐसे कार्य कर दिखाए हैं जिनके संबंध में आज भी आश्चर्य होता है। मनुष्य को चाहिए कि कार्य की कठिनाई से न घबरा के पुरुषार्थ से उसका मुकाबला करे।
नीतिज्ञो देशकालौ परीक्षेत्
कर्तव्य को विवेक से करना नीतिवान मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है। व्यवहार कुशल व्यक्ति परिस्थितियों और सुअवसर दोनों बातों का पूर्ण ज्ञान करने के बाद ही कार्य प्रारंभ करता है। वह कार्य प्रारंभ करने से पूर्व भली प्रकार इसकी विवेचना करता है। नीतिवान व्यक्ति वही है जो कार्य को बिना विचारे ही आरंभ नहीं कर देता।
परीक्ष्यकारिणि श्रीश्वरं तिष्ठति
आचार्य चाणक्य के मुताबिक, भली प्रकार सोच विचार कर या अवसर को पहचानने के बाद जो व्यक्ति कार्य करता है, उसे ही सफलता प्राप्त होती है। विशेष रूप से राजा का कर्तव्य है कि वह सभी प्रकार के उपायों से अर्थात अपनी बुद्धि-कौशल से सभी प्रकार की संपत्तियों का संग्रह करे। राजा का कर्तव्य है कि वह साम, दाम, दंड, भेद आदि उपायों से संपत्तियों का संचय करें।