‘मिशन सूरज’ : ISRO का सबसे जटिल मिशन होगा आदित्य एल-1, जानें क्यों सूर्य की स्टडी है जरूरी

नईदिल्ली। इंडियन स्पेस रिचर्स ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) का चंद्रयान-3 मिशन काफी पेचीदा रहा. इस मिशन के जरिए भारत बुधवार को चंद्रमा के साउथ पोल पर पहुंच गया. चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड करना काफी चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि यहां की जमीन न सिर्फ बड़े-बड़े क्रेटर से भरी हुई थी. चंद्रयान-3 मिशन शाम 6.04 बजे चांद की सतह पर पहुंचा. हालांकि, चंद्रयान की सफलता के बाद भारत की स्पेस एजेंसी इसरो इससे भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण मिशन को अंजाम देनी वाली है.

दरअसल, इसरो अगस्त के आखिर में या सितंबर की शुरुआत में आदित्य एल-1 मिशन को लॉन्च करने वाला है. ये इसरो का अब तक का सबसे जटिल मिशन होने वाला है. आदित्य एल-1 मिशन के जरिए सूर्य तक जाया जाएगा. इस मिशन के जरिए भारत पहली बार सौरमंडल में ‘स्पेस ऑब्जर्वेटरी’ तैनात करेगा. आदित्य एल-1 स्पेसक्राफ्ट का काम सूरज पर 24 घंटे और सातों दिन नजर रखना होगा.

लैग्रेंज प्वाइंट तक भेजा जाएगा स्पेसक्राफ्ट
भारत ने आज तक लैग्रेंज प्वाइंट तक स्पेसक्राफ्ट नहीं भेजा है. लैग्रेंज प्वाइंट स्पेस के दो या दो से ज्यादा विशाल चीजों (जैसे सूर्य और पृथ्वी के बीच) के बीच एक प्वाइंट है. यहां अगर किसी स्पेसक्राफ्ट को भेजा जाता है, तो वह दो विशालकाय वस्तुओं के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव की वजह से एक जगह रहती है. आदित्य स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी से 15 लाख KM दूर भेजा जाएगा. स्पेसक्राफ्ट को इस प्वाइंट पर टिकाए रखना बहुत मुश्किल होता है.

इन दो उपकरणों से होगी सूर्य की स्टडी
पृथ्वी-सूर्य के बीच पांच लैग्रेंज प्वाइंट हैं, जिसमें आदित्य को लैग्रेंज-1 तक भेजा जाएगा. आदित्य एल-1 स्पेसक्राफ्ट में SUIT और VELC जैसे दो प्रमुख उपकरण लगे होंगे. इन्हें भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. VELC के जरिए स्पेक्ट्रोपोलरिमेट्रिक मेजरमेंट किया जाएगा. आसान भाषा में कहें, तो इस उपकरण के जरिए सूर्य के चुंबकीय फील्ड की स्टडी होगी. ऐसा पहली बार होगा, जब कोई देश सूर्य के चुंबकीय फील्ड की स्टडी करेगा.

सूर्य की स्टडी करना जरूरी क्यों है?
आदित्य एल-1 स्पेसक्राफ्ट एक स्पेस टेलिस्कोप की तरह होगा. इस मिशन के दो मुख्य काम हैं. इसमें पहला लंबे समय तक सूर्य की साइंटिफिक स्टडी करना और दूसरा हमारे सैटेलाइट्स को बचाना. दरअसल, सूर्य से रेडिएशन और सौर तूफानों का खतरा है. इनकी वजह से पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद सैटेलाइट्स खराब हो जाती हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि सौर तूफानों की वजह से इलेक्ट्रिकल ग्रिड में भी खराबी आ जाती है.

सूर्य से सौर तूफान का ही खतरा नहीं है, बल्कि इसकी वजह से होने वाले कोरोनल मास इजेक्शन और सौलर फ्लेयर्स भी पृथ्वी के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं. ये रेडियो कम्युनिकेशन को खराब कर सकते हैं. अंतरिक्ष में मौजूद एस्ट्रोनोट्स को भी इनसे नुकसान पहुंच सकता है. आदित्य एल-1 स्पेसक्राफ्ट का काम सूर्य में होने वाली इन्हीं गतिविधियों पर नजर रखना है. एक तरह से ये वार्निंग सिस्टम के तौर पर काम करेगा.

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