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मसान होली : वाराणसी में चिता की राख से खेलते हैं होली, जानें क्या है परंपरा और धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में होली पर्व का विशेष महत्व है और पूरे देश में होली त्योहार काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। हालांकि भारत जैसे विशाल देश में होली पर्व को अलग-अलग राज्य में अलग-अलग अंदाज के साथ मनाया जाता है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि धार्मिक नगरी काशी में चिता की भस्म से होली खेलने की परंपरा है, जहां रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर मसान होली खेली जाती है।

उत्साह के साथ खेली जाती है मसान होली

उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक धार्मिक शहर वाराणसी में महाश्मशान कहे जाने वाले मणिकर्णिका घाट पर ‘मसान होली’ पूरे उत्साह के साथ खेली जाती है और यहां शिव भक्त चिताओं की राख से होली खेलते हैं। डमरू की गूंज के साथ शिव भक्त घाट स्थित मसान नाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते हैं और भोलेनाथ को भस्म चढ़ाते हैं और बाद में एक दूसरे को चिता की भस्म लगाकर मसान होली खेलते हैं।

मसान होली को लेकर ये है धार्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यता है कि रंगभरनी एकादशी के दूसरे दिन भगवान शिव सभी गणों के साथ मणिकर्णिका घाट पर सभी भक्तों को दर्शन देने आते हैं और भस्म से होली खेलते हैं क्योंकि लोगों का मानना है कि शंकर को भस्म बहुत प्रिय है और भस्म से ही वे अपना सिंगार करते हैं। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि रंगभरनी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती का विवाह से बाद गौना कराकर अपने धाम लाए और भोले बाबा ने सभी देवी-देवताओं के साथ होली खेली थी, लेकिन इस होली उत्सव में भगवान भोलेनाथ के प्रिय गण, भूत-प्रेत, पिशाच, निशाचर, और अदृश्य शक्तियां शामिल नहीं हो पाईं, ऐसे में होली खेलने के लिए भगवान शिव खुद ही मसान घाट पर आ गए थे।

मणिकर्णिका घाट पर मसान मंदिर का इतिहास

16वीं शताब्दी में जयपुर के राजा मान सिंह ने गंगा नदी के किनारे मणिकर्णिका घाट पर मसान मंदिर का निर्माण कराया था। मणिकर्णिका घाट को हिंदू धर्म ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है और यहां पर रोज ही 100 लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता है, जिसमें 5,7,9 तथा 11 मन लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। यहां पंचपल्लव यानी पांच पेड़ों की लड़की से अंतिम संस्कार किया जाता है। मसान होली पर होली खेलने के लिए विशेष रूप से 4000 से 5000 किलो लकड़ी जलाई जाती है।

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