CG शहीद की मां की पुकार : मेरे बेटे के स्मारक की जगह बदली जाए, 7 साल से लगा रही गुहार, शासन- प्रशासन नहीं ले रहा सुध

राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के शहीद हेमन्त महिलकर की वृद्ध माता स्मारक बनवाने के लिए दर- दर की ठोकरें खा रही है। बेटे की स्मारक की मांग करते हुए 7 साल से शासन- प्रशासन से वृद्ध मां मदद की गुहार लगा रही है। लेकिन अब तक उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी। साल 2017 में बीजापुर में पुलिस नक्सली मुठभेड़ के दौरान बहादुरी से लड़ते हुए हेमन्त शहीद हो गए थे। जिस जवान ने देश की रक्षा के लिएअपने प्राण न्योछावर कर दिए थे आज उनकी प्रतिमा को उनके ही गांव के स्कूल में स्थान दिलाने के लिए परिवार आंसू बहा रहा है।

दरअसल हम बात कर रहे हैं राजनांदगांव जिले के ग्राम सोनेसरकार की, जहां के हेमन्त महिलकर 2017 में नक्सली पुलिस मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। शासन-प्रशासन ने उनकी शहादत पर घड़ियाली आंसू तो बहाए लेकिन 7 साल बाद भी प्रशासनिक उदासीनता के कारण स्व. हेमन्त महिलकर  के स्मारक का निर्माण नहीं हो पाया। जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर स्थित सोनेसरार में शिक्षा-दीक्षा के बाद उनका चयन छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल में हुआ। हेमन्त कुमार महिलकर की माता सावली महिलकर ने बताया कि, साल 2017 में वे सूरजपुर में पदस्थ थे। इस दौरान बीजापुर में पुलिस नक्सली मुठभेड़ के दौरान बहादुरी से लड़ते हुए वे शहीद हो गए।

शहीद की माता ने बताया कि, जिस दिन उनके बेटे की मौत हुई तो बड़े-बड़े अधिकारी और नेता उसकी शहादत पर आंसू बहाने के लिए आये थे। लेकिन उसी शहीद के स्मारक की अर्जी लेकर उनके दफ्तर जाने पर उन्हें सिर्फ खोखले आश्वासन मिले। 7 साल तक दर- दर की ठोकरें खाने और दफ्तरों के चक्कर लगाने के बाद भी उनकी गुहार नहीं सुनी गई। शहीद के परिवार और ग्रामीणों से बातचीत करने पर पता चला कि गांव के दबंग शहीद का स्मारक नहीं लगने देना चाहते। इसलिए षडयंत्रपूर्वक ऐसी जगह पर स्मारक लगाने के लिए चबूतरा बना दिया गया जहां पर स्कूली बच्चों के टॉयलेट का पानी गिरता है। ऐसे में उनकी माता ने गांव के सरपंच और एसडीएम से गुहार लगाई कि स्कूल परिसर में ही उन्हें दूसरी तरह जगह दे दी जाए लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई।

शासन- प्रशासन को सुध नहीं 

शहीद के परिवार की यह हालत देखकर सरकार- प्रशासन के वादों और दावों की पोल खुल चुकी है। जिस जवान ने अपने घर परिवार की परवाह किए बिना देश सेवा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। वहीं वृद्ध मां ने जब स्मारक की जगह बदलने की गुहार उन्होंने लगाई तो गांव की हर बैठक में सर्वसम्मति नहीं मिलने का हवाला देते हुए इस मामले में पल्ला झाड़ लिया। आज 7 साल बाद भी एक बूढ़ी मां की आंखें गांव के स्कूल में अपने शहीद बेटे के स्मारक को देखने की आस में प्रशासन की ओर उम्मीद की नजरों से देख रही हैं। विडंबना है कि आज शासन प्रशासन उस जवान की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए 2 गज जमीन नहीं दे पा रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button