भगवान् जगन्नाथ की रथयात्रा आज : रथ यात्रा में 20 लाख पर्यटकों के पहुंचने की उम्मीद

ओडिशा के पुरी में होनेवाली विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा की तमाम तैयारियां पूरी जो चुकी हैं। इस साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 20 जून 2023, मंगलवार को निकाली जाएगी। इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ पूरे नगर का भ्रमण करते हैं, जिसमें उनके साथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा मौजूद होती हैं।

भव्य और विशालकाय रथों में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा विराजमान होकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। इस मंदिर को उनकी मौसी का घर माना जाता है। इस भव्य यात्रा का समापन शुक्ल पक्ष के 11वें दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ होता है। ओडिशा की इस भव्य रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) में शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग पुरी पहुंचते हैं। रेलवे ने इसके लिए पूरी तैयारियां कर रखी हैं। अनुमान है कि जगन्नाथ यात्रा को देखने के लिए करीब 20 लाख लोग पुरी पहुंच सकते हैं।

कब प्रारंभ होगी रथयात्रा?

हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि पर इस यात्रा का शुभारंभ होता है। पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि का शुभारंभ 19 जून सुबह 11:25 से हो रहा है। इसका समापन अगले दिन यानी 20 जून 2023 को दोपहर 1:07 पर होगा। उदया तिथि के अनुसार 20 जून को रथयात्रा निकाली जाएगी। शास्त्रों में भगवान् जगन्नाथ रथयात्रा का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्‍नाथजी की रथयात्रा में शामिल होने से सौ यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है।

रथ की विशेषता

जगन्नाथ यात्रा की तैयारी, अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है। इन देवताओं के रथ निर्माण में विशेष सावधानी बरती जाती है। आइये जानते हैं इनकी खासियत…

भगवान जगन्नाथ का रथ

भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष के नाम से जाना जाता है। प्राचीन काल में इस रथ को गरुड़ध्वज या कपिलध्वज के नाम से भी जाना जाता था। इस रथ में 16 पहिए होते हैं और यह 13.5 मीटर ऊंचा होता है। वहीं इस रथ में खासकर पीले रंग के कपड़े का प्रयोग किया जाता है। विष्णु का वाहक गरूड़ इसकी रक्षा करता है। विष्णु का वाहक गरूड़ इसकी रक्षा करता है। रथ पर जो ध्वज है, उसे त्रैलोक्यमोहिनी या नंदीघोष कहते हैं।

बलराम जी का रथ

भगवान बलराम जी के रथ का नाम तालध्वज है। साथ ही इस रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। यह लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। वहीं जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है, वह वासुकी कहलाता है। यह रथ 13.2 मीटर ऊंचा होता है और इसमें 14 पहिये होते हैं।

बहन सुभद्रा का रथ

भगवान बलभद्र और जगन्नाथ भगवान की छोटी बहन सुभद्रा का रथ का नाम पद्मध्वज है। इस रथ को तैयार करने में काले और लाल रंग के कपड़ों का प्रयोग किया जाता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। वहीं इसके अश्व रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता हैं। साथ ही से खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं।

मंदिर का इतिहास

भारत के चार पवित्र धामों में से एक पुरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण, जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं। उनके साथ यहां बलभद्र एवं सुभद्रा भी हैं। भगवान जगन्नाथ मंदिर को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं।एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा इन्द्रद्युम्न, भगवान जगन्‍नाथ को शबर राजा से यहां लेकर आए थे तथा उन्होंने ही मूल मंदिर का निर्माण कराया था। ऐसा माना जाता है ययाति केशरी ने भी एक मंदिर का निर्माण कराया था। वर्तमान में मंदिर की ऊंचाई 65 मीटर है, जिसको 12वीं शताब्दी में चोल गंगदेव और अनंग भीमदेव ने कराया था।

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