अद्वितीय प्राकृतिक निर्माणों और रहस्यमय जीवों से भरा है कोटमसर गुफा, अंधी मछलियां व गुफाओं में गूंजती है एक रहस्यमयी खोखली आवाज

जगदलपुर। सर्दियों के मौसम में घूमने का अपना ही मजा है, और अगर आप भी इस मौसम को यादगार बनाना चाहते हैं, तो छत्तीसगढ़ के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित कोटमसर गुफा आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है। यहां की अद्भुत प्राकृतिक संरचनाएं और ठंडी मौसम में घूमने का अनुभव आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाएंगे।

छत्तीसगढ़ में स्थित एक अद्भुत पर्यटन स्थल, जहां प्रकृति ने अजीब और आकर्षक रहस्यों का संग्रह किया है, पर्यटकों के बीच अब एक आकर्षण का केंद्र बन चुका है। यहां पाई जाती हैं अंधी मछलियां, जो गुफाओं में पाई जाती हैं और गुफाओं में गूंजती है एक रहस्यमयी खोखली आवाज, जो इसे और भी रोमांचक बनाती है।

कोटमसर गुफा से आती हैं रहस्यमयी आवाजें

कोटमसर गुफा, जो कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित है, अपने अद्वितीय प्राकृतिक निर्माणों और रहस्यमय जीवों के कारण पर्यटकों को खींच रही है। इस गुफा का आकर्षण केवल इसके अंदर की अद्भुत संरचनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां की अंधी मछलियां और रहस्यमयी आवाजें इसे और भी दिलचस्प बनाती हैं।

गुफा में प्रवेश करते ही, पर्यटक इन प्राकृतिक चमत्कारों को देखकर दंग रह जाते हैं। इस गुफा में स्थित अंधे कुएं पर चोट करने से जो खोखली आवाज सुनाई देती है, वह यहां आने वालों को एक अनोखा अनुभव देती है। साथ ही, यहां पाई जाने वाली अंधी मछलियां और अन्य सरीसृप इस गुफा को और भी रहस्यमय बनाते हैं।

कोटमसर गुफा में प्रकृति ने गढ़ी है अद्भुत संरचनाएं

कोटमसर गुफा को प्रकृति ने अद्भुत संरचनाओं से संवारा है, यहां स्टैलेक्टाइट और स्टैलेग्माइट स्तंभों की भरमार है।

गुफा का प्रवेश द्वार मात्र पांच फीट ऊंचा और तीन फीट चौड़ा एक छोटा सा मार्ग है।

गुफा में पांच विशाल कक्ष हैं, जिनमें कई अंधे कुएं भी हैं।

चट्टान से ढंके एक अंधे कुएं पर चोट करने पर खोखली ध्वनि सुनाई देती है।

1990 में खोजी गई इस गुफा का सर्वेक्षण डा. शंकर तिवारी ने 1951 में किया था।

गुफा के अंदर जाने का रास्ता 330 मीटर लंबा और 20 मीटर से 72 मीटर चौड़ा है।

गुफा में कई सरीसृप, मकड़ियां, चमगादड़ और झींगुर मौजूद हैं।

यहां अंधी मछलियां पाई जाती हैं, जो गुफा के अनोखे पर्यावरण को दर्शाती हैं।

गुफा के पिछले हिस्से में चूना पत्थर से बना एक ‘शिवलिंग’ भी है, जो एक और रहस्यमयी आकर्षण है।

अब सांस्कृतिक पर्यटन को जोड़ा

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के प्रबंधक चूड़ामणी सिंह ने बताया कि कोटमसर गांव बस्तर की विशिष्ट धुरवा जनजाति का घर है। यह जनजाति केवल राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र के आस-पास ही निवास करती है। इससे अब पर्यटकों को धुरवा जनजाति के संस्कृति, परंपरा को देखने-समझने का भी अवसर मिलेगा।

पार्क प्रबंधन की ओर से कोटमसर के ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने के साथ ही सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने यह निर्णय लिया गया है। यहां पर्यटक धुरवा जनजाति के पंरपरागत नृत्य का आनंद लेने के साथ ही बस्तर की पंरपरागत भोजन का स्वाद भी चख सके।

कोटमसर के द्वार खुलते ही गुफा का सौंदर्य देखने उमड़ने लगे सैलानी

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान स्थित कोटमसर गुफा में लंबे समय तक ग्रामीणों और वन विभाग के बीच कामानार स्थित काउंटर को कोटमसर गांव में विस्थापित करने को लेकर हुए विवाद के समाप्त होने के बाद विगत 16 नवंबर को कोटमसर गुफा को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था। इसके बाद से कोटमसर गुफा का सौंदर्य देखने पर्यटकों की भारी भीड़ यहां उमड़ रही है।

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