माघ शुक्ल एकादशी को जया एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान श्री केशव की पूजा किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से भूत, प्रेत, पिशाच आदि दुष्ट योनियों में जाने का भय नहीं रहता है। व्रत करने वालों के कई जन्मों के पाप धुल जाते हैं व दोष नष्ट हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति न केवल इस लोक में बल्कि परलोक में भी सुख भोगता है। इस बार जया एकादशी 1 फरवरी बुधवार को पड़ रही है।
कथा
एक बार देवराज इंद्र ने गंधर्व से क्रोधित होकर उन्हें और उनकी पत्नी को पिशाच योनि में होने का श्राप दे दिया। दोनों पति पत्नी पिशाच बनकर इधर-उधर घूमने लगे। एक दिन एक ऋषि ने उन्हें इस अवस्था में देखा और उनका दुख सहन नहीं कर सके। ऋषि ने उनके दुःख से द्रवित होकर उन दोनों को जया एकादशी का व्रत करने को कहा ताकि वे इन सनक से मुक्त हो सकें। इस पर गन्धर्व हाथ जोड़कर दुःखी होकर बोले, हे ऋषि, मैं पिशाच योनि में रहकर यह व्रत कैसे कर पाऊँगा। इसके लिए, कृपा से, ऋषि ने स्वयं जया एकादशी का व्रत और पूजा करके इन दोनों गंधर्वों के लिए अपना पुण्य समर्पित कर दिया। इस पुण्य को प्राप्त करके गंधर्व दंपत्ति ने स्वयं को पिशाच योनि से मुक्त कर लिया और अपने पूर्व स्वरूप में लौट आए।
दोनों मुनियों ने श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और उन्हें हृदय की गहराई से धन्यवाद दिया और उनके सामने यह प्रण लिया कि वे अब हर साल विधि-विधान से जया एकादशी का व्रत करेंगे। फिर अगली जया एकादशी की तैयारी पहले से की गई और उस दिन विधि-विधान से पूजा की गई और हमेशा ऐसा ही होता रहा। इस दिन भगवान केशव की पूजा-अर्चना कर व्रत करने वालों को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।