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आईएसआई का भारत के खिलाफ के2 प्लान, 1971 की हार का बदला लेना चाहता है पाकिस्तान

ISI

इस्लामाबाद: पाकिस्तान ने खालिस्तान के मुद्दे को हवा देकर भारत के खिलाफ अपने K2 प्लान को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। इस प्लान को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने 1990 के दशक में तैयार किया था। K2 का वास्तविक अर्थ कश्मीर और खालिस्तान है। पाकिस्तान अब अच्छी तरह से जान चुका है कि कश्मीर में उसकी चाल कभी सफल होने वाली नहीं है।

ऐसे में वह प्लान बी की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। पिछले दो-तीन साल से पूरी दुनिया में तेजी से सिर उठा रहा खालिस्तानी आतंकवाद इसी का एक उदाहरण है। पाकिस्तान जानता है कि खालिस्तान भारत की दुखती नब्ज है। ऐसे में वह इस मामले को हवा देकर 1971 के युद्ध में मिली हार का भी बदला लेना चाहता है।

खालिस्तानी आतंकवाद के पीछे पाकिस्तान का दिमाग

खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत 1940 के दशक में हुई थी। तब मुस्लिम लीग के लाहौर घोषणापत्र के जवाब में डॉक्टर वीर सिंह भट्टी ने एक पैम्फलेट में इस नाम का इस्तेमाल किया था। इसके बाद 1966 में भाषाई आधार पर पंजाब के पुनर्गठन से पहले अकाली नेताओं ने पहली बार 60 के दशक में सिखों के लिए स्वायत्तता का मुद्दा उठाया था।

70 के दशक की शुरुआत में चरण सिंह पंछी और डॉक्टर जगजीत सिंह चौहान ने पहली बार खालिस्तान की मांग की थी। हालांकि, बाद में यह मांग समय के साथ धीमी पड़ने लगी। लेकिन, पाकिस्तान ने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टॉर के बाद खालिस्तान की मांग को फिर से हवा देने की कोशिश की। उसने पैसों और हथियारों से खालिस्तानी आतंकवादियों की जमकर मदद की।

कश्मीर में फेल हो चुका है पाकिस्तान

पाकिस्तान ने आजादी के बाद से ही कश्मीर को लेकर भारत को बदनाम करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वह कश्मीर में आतंकवादियों को तैयार करता था और उन्हें पैसों और हथियारों से मदद करता था। लेकिन, अगस्त 2019 में भारत सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म कर आतंकवाद की रीढ़ तोड़ दी। इस फैसले के बाद कश्मीर में न केवल अमन-चैन वापस लौटा, बल्कि टूरिज्म में भी बढ़ोत्तरी हुई।

पत्थरबाजी की घटनाएं कम हुईं और आतंकवाद पर भी प्रभावी लगाम लगा। पाकिस्तान यह जान चुका है कि वह न तो आतंकवाद और ना ही सेना के दम पर भारत के कश्मीर को छीन सकता है। अब तो अंतराष्ट्रीय समुदाय ने भी पाकिस्तान की बातों पर गौर करना छोड़ दिया है। ऐसे में पाकिस्तान के पास खालिस्तान मुद्दे को हवा देने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा है।

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