महान कवि संत कबीर दास 15 वीं सदी के रहस्यवादी कवि माने जाते हैं। कबीर भारतीय समाज में एक विचारक और समाज सुधारक देते हैं। आज भी उनकी सीखी पाठ्यक्रमों में शामिल है। ऐसा कहा जाता है कि संत कबीर की दिव्य वाणी आज भी लोगों को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने में अहम भूमिका निभाती है। 4 जून 2023 को देशभर में कबीर दास की जयंती मनाई जाएगी। कबीर दास जयंती पर जानते हैं उनके वह प्रेरणादायक दोहे जो आपके जीवन को सही राह दिखाकर सफलता के मार्ग पर ले जा सकते हैं।
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।।
अर्थ – इस दोहे में संत कबीर दास कहते हैं कि मनुष्य जाति को कभी भी एक छोटे से तिनके की भी निंदा नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये उड़कर अगर आपकी आंख में चला गया तो असहनीय दर्द देगा। अर्थात कभी किसी भी व्यक्ति की बुराई न करें। धन, दौलत, कपड़ों से लोगों को कभी नहीं आंकना चाहिए। न ही उनका उपहास करना चाहिए. जीवन में किसी को कमजोर न समझें क्योंकि वक्त पलटते देर नहीं लगती। आपके अच्छे विचार और व्यवहार ही सफलता की पहली सीढ़ी होते हैं।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ॥ हे मन !
अर्थ – संत कबीर कहते हैं कि समय के साथ सभी कार्य पूरे हो जाते हैं, बस धैर्य का साथ कभी न छोड़ें, यदि कोई व्यक्ति एक ही दिन में सौ घड़े किसी पेड़ में डाल देगा तब भी फल तो समय आने पर ही लगेंगे। धैर्य मनुष्य की समझदारी का प्रतीक है। हड़बड़ी में या अति उत्साहित होकर काम बिगड़ जाते हैं इसलिए धीरज बनाए रखें, मेहनत से किया काम कभी खाली नहीं जाता। देर से ही सही लेकिन ईमानदारी के कर्म का फल बहुत मीठा होता है जो लंबे समय तक सुख देता है।
कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
अर्थ – संत कबीर कहते हैं कि मनुष्य ज्ञान के बिना अंधे व्यक्ति के समान होता है। गुरु से ज्ञान की प्राप्ति होती है। हमेशा गुरु का सम्मान करें। क्योंकि आपको तराशने वाले गुरु ही होते हैं। गुरु ही आपको जीवन में सही और गलत में अंतर करना बताते हैं। कबीर दास जी कहते हैं की वो नर अंधे हैं जो गुरु को भगवान से छोटा मानते हैं क्योंकि ईश्वर के रुष्ट होने पर एक गुरु का सहारा तो है लेकिन गुरु के नाराज होने के बाद कोई ठिकाना नहीं है।