विवाह दो लोगों के बीच जीवन भर का बंधन। विवाह दो लोगों को एक करने की परंपरा है। वहीं, दूसरे शब्दों में विवाह को समझा जाए तो दो लोगों के बीच के रिश्ते को सामाजिक और धार्मिक मान्यता देना है। लेकिन, क्या आपके मन में कभी नहीं आया कि आखिर विवाह की शुरुआत कैसा हुई सबसे पहले किसने विवाह किया। आइए जानते हैं भारत में कैसे हुई थी विवाह परंपरा की शुरुआत।
कैसा हुई विवाह की शुरुआत
शुरुआत में विवाह जैसा कुछ नहीं हुआ करता था। स्त्री और पुरुष दोनों की स्वतंत्र रहा करते थे। पहले के समय में कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री को पकड़कर ले जाया करता था। इस संबंध में महाभारत में एक कथा मिलती गै। एक बार उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु ऋषि अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी वहां एक अन्य ऋण आए और उनकी माता को उठाकर ले गए। ये सब देखकर श्वेत ऋषि को बहुत गुस्सा आया। उसके पिता ने उन्हें समझाया की प्राचीन काल से यहीं नियम चलता आ रहा है। उन्होंने आगे कहा कि संसार में सभी महिलाएं इस नियम के अधीन है।
श्वेत ऋषि ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह तो पाशविक प्रवृत्ति है यानी जानवरों की तरह जीवन जीने के समान है। इसके बाद उन्होंने विवाह का नियम बनाया। उन्होंने कहा कि जो स्त्री विवाह बंधन में बंधने के बाद दूसरे पुरुष के पास जाती है तो उन्हें गर्भ हत्या करने जितना पाप लगेगा। इसके अलावा जो पुरुष अपनी पत्नी को छोड़कर किसी दूसरी महिला के पास जाएगा उसे भी इस पाप का परिणाम भोगना होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि विवाह बंधन में बंधने के बाद स्त्री और पुरुष अपनी गृहस्थी को मिलकर चलाएंगे। उन्होने ही यह मर्यादा तय कर दी कि पति के रहते हुए कोई स्त्री उसकी आज्ञा के विरुद्ध अन्य पुरुष के साथ संबंध नहीं बना सकती है।
विवाह के कितने प्रकार
इसके बाद महर्षि दीर्घतमा ने एक प्रथा निकाली और कहा कि जीवन भर पत्नियां अपने पति के अधीन रहेंगी। इसके बाद पति की मृत्यु होने पर भी लोग उनकी पत्नियों को जलाने लगे। जिसे सती प्रथा कहा जाने लगा। इसके बाद आर्य जाति के लोग एक से अधिक स्त्रियां रखने लगे। इसलिए इस नियम को बनाना पड़ा। उस समय तक विवाह दो प्रकार से हुआ करते थे। पहला लड़ाई, झगड़ा करके या बहला फुसलाकर कन्या को ले जाया करते थे। दूसरा यज्ञ के समय कन्या को दक्षिणा के रूप में दान कर दिया जाता था। इसके बाद विवाह का अधिकार पिता के हाथों में दिया गया। जिसके बाद पिता योग्य वरों को बुलाकर अपनी बेटी को उनमें से चुनने के लिए कहा करते थे। विवाह पहले आठ प्रकार के हुए करते थे। दैव, ब्रह्म, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गंधर्व, राक्षस और पैशाच। लेकिन, आजकल ब्रह्म विवाह प्रचलित है।