नई दिल्ली : बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन की समय से पहले जेल से रिहाई को पूर्व आइएएस अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर आठ मई को सुनवाई होगी। उमा का कहना है कि उन्हें न्यायपालिका पर भरोसा है। उन्हें न्याय जरूर मिलेगा।
”न्यायपालिका मामले के साथ न्याय करेगी”
उमा देवी ने याचिका पर सुनवाई को लेकर कहा, “यह एक बहुत अच्छा संकेत है। मुझे न्यायपालिका पर भरोसा है। वह इस मामले के साथ न्याय करेगी।”
आनंद मोहन को 27 अप्रैल को जेल से किया गया रिहा
बिहार की जेल नियमावली में संशोधन के बाद आनंद मोहन को 27 अप्रैल को सहरसा जेल से रिहा किया गया। गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की 1994 में हुई हत्या के मामले में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। जिलाधिकारी की पत्नी उमा ने उसकी रिहाई को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिस पर अब आठ मई को प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला की पीठ सुनवाई करेगी।
महज 14 साल में नहीं की जा सकती उम्रकैद की व्याख्या
जी. कृष्णैया की पत्नी ने अपनी याचिका में दलील दी है कि आनंद मोहन को सुनाई गई उम्रकैद की सजा उसके पूरे जीवनकाल के लिए है और इसकी व्याख्या महज 14 वर्ष की कैद की सजा के रूप में नहीं जा सकती।उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा है कि जब मृत्युदंड की जगह उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है, तब उसका सख्ती से पालन करना होता है। इसमें कटौती नहीं की जा सकती।
आनंद मोहन का नाम उन 20 कैदियों में शामिल है, जिन्हें जेल से रिहा करने के लिए राज्य के कानून विभाग ने इस हफ्ते की शुरुआत में एक अधिसूचना जारी की थी, क्योंकि वह जेल में 14 वर्षों से अधिक समय बिता चुके हैं। बिहार जेल नियमावली में राज्य की महागठबंधन सरकार द्वारा 10 अप्रैल को संशोधन किये जाने के बाद आनंद मोहन की सजा घटा दी गई।
भीड़ ने जी. कृष्णैया को उतारा मौत के घाट
तेलंगाना के रहने वाले जी. कृष्णैया की 1994 में एक भीड़ ने उस समय पीट-पीटकर हत्या कर दी थी, जब उनके वाहन ने मुजफ्फरपुर जिले में गैंगस्टर छोटन शुक्ला की शवयात्रा से आगे निकलने की कोशिश की थी। तब आनंद मोहन विधायक था और शवयात्रा में शामिल था।