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क्या भाजपा को येदियुरप्पा का मोह ले डूबा? इन वजहों से बिगड़ा बीजेपी का खेल

बेंगलुरु : कर्नाटक चुनाव के नतीजों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनती दिख रही है। नतीजों से साफ हो गया है कि भाजपा दक्षिण भारत के अपने इकलौते दुर्ग कर्नाटक में सत्ता से बाहर हो गई है। हार के बाद भाजपा के हार के कारणों का भी विश्लेषण शुरू हो गया है। विश्लेषण में भाजपा की हार का जो एक प्रमुख कारण नजर आ रहा है, वो है भाजपा की बीएस येदियुरप्पा पर निर्भरता। ऐसा लग रहा है कि कर्नाटक में भाजपा को बीएस येदियुरप्पा का मोह ले डूबा!

लिंगायत वोटों को नहीं कर पाए एकजुट

कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। कर्नाटक में भाजपा को जमीनी स्तर पर खड़ा करने और पार्टी के पक्ष में लिंगायतों का समर्थन जुटाने में येदियुरप्पा की भूमिका अहम रही थी। हालांकि 2023 के विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा करिश्मा दोहराने में नाकाम रहे। नतीजों से साफ है कि लिंगायतों का एकजुट समर्थन भाजपा को नहीं मिल सका।

येदियुरप्पा सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके हैं और सक्रिय राजनीति छोड़ने का असर येदियुरप्पा की ताकत पर पड़ा है। कर्नाटक में लिंगायत मतदाता करीब 17 प्रतिशत हैं और राज्य की राजनीति में इनका बड़ा प्रभाव है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कर्नाटक के नौ मुख्यमंत्री इसी सुमदाय से रहे हैं। कर्नाटक में भाजपा की जीत में भी इस समुदाय की भूमिका अहम होती है। हालांकि इस बार भाजपा चूक गई।

भाजपा को भारी पड़ा येदियुरप्पा मोह

बीएस येदियुरप्पा ने साल 2021 में  कर्नाटक के मुख्यमंत्री का पद छोड़ा था। येदियुरप्पा की बढ़ती उम्र और नए नेतृत्व को मौका देने के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर ही येदियुरप्पा ने इस्तीफा दिया लेकिन कर्नाटक की राजनीति पर येदियुरप्पा की पकड़ और संगठन पर उनके प्रभाव के चलते भाजपा पूरी तरह येदियुरप्पा से किनारा नहीं कर पाई। भाजपा को उम्मीद थी लेकिन विधानसभा चुनाव तक कर्नाटक में नई लीडरशिप को तैयार कर लिया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका। ऐसे में भाजपा को फिर से येदियुरप्पा के नाम का सहारा लेना पड़ा।

जिस जोर-शोर से भाजपा ने कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन किया था और फिर वापस भाजपा का येदियुरप्पा की शरण में जाना कहीं ना कहीं मतदाताओं को पसंद नहीं आया। भाजपा परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ मुखर रही है लेकिन येदियुरप्पा पर वंशवाद की राजनीति को बढ़ावा देने के आरोप लगे। येदियुरप्पा ने अपनी विधानसभा सीट शिकारीपुरा से अपने बेटे बीवाई विजयेंद्र के चुनाव लड़ाने का एलान किया, जिससे कई नेता नाराज हो गए थे।

वरिष्ठ नेताओं का भाजपा छोड़ना पड़ा भारी

टिकट बंटवारे को लेकर भाजपा में काफी विवाद हुआ। इसके चलते पार्टी के कई बड़े नेता भी भाजपा छोड़ गए। इनमें पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी जैसे नेता प्रमुख हैं। कांग्रेस नेता एमबी पाटिल भी कर्नाटक के बड़े लिंगायत नेता माने जाते हैं। ऐसा बताया जा रहा है कि जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी का कांग्रेस में शामिल कराने में एमबी पाटिल का ही हाथ रहा। वहीं येदियुरप्पा ने नाराज नेताओं को मनाने की कोई कोशिश नहीं की। बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने से पार्टी कार्यकर्ताओं पर भी इसका असर पड़ा। इससे लिंगायत वोटबैंक बिखरा और जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा।

भ्रष्टाचार का मुद्दा पड़ा भारी

बीएस येदियुरप्पा चार बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे हैं लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में बीएस येदियुरप्पा का दामन भी साफ नहीं है। सीएम रहते हुए येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे। 2023 के चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ जिन बातों को मुद्दा बनाया, उनमें भ्रष्टाचार भी एक था। ये भी एक वजह रही कि जब कांग्रेस, भ्रष्टाचार को लेकर बोम्मई सरकार पर हमलावर थी तो येदियुरप्पा की छवि भी भाजपा का बचाव नहीं कर सकी क्योंकि इस मामले में खुद उनकी छवि सवालों के घेरे में है।

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