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क्या आप जानते हैं कौन हैं भगवान शिव के गण, जानिए उनका रहस्य

सनातन ग्रंथों में शिव महिमा का गुणगान बहुत खूबसूरती के साथ किया गया है। शिव शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं। यह काल महाकाल ही ज्योतिष शास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव जहां विराजमान हैं, वहां शक्ति स्वरूपा देवी पार्वती, श्री गणेश, कार्तिकेय और नंदी भी हैं। इन सबसे अलग शिव के साथ गण भी रहते हैं। इन गणों के शिव के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं समझता है। आखिर कौन हैं ये गण ? क्या है इनका महत्व ? आइये इन प्रश्नों का उत्तर जानते हैं।

शिवपुराण में है शिव जी के अलग-अलग नाम

शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव का अलग-अलग प्रकार से वर्णन किया गया है। शिव का आशुतोष यानी सरलता से प्रसन्न होने वाला बताया गया है। वहीं, सभी समान मानने वाला महादेव कहा गया है। अति क्रोधी भयंकर स्वरूप में उन्हें रूद्र कहा जाता है। ठीक उसी प्रकार शिव के गणों का वर्णन मिलता है। कोई उन्हें शिव का मित्र बताता है, तो कोई उनका रक्षक। लेकिन असल में गण महादेव के मित्र भी हैं और रक्षक भी। पुराणों में शिव के प्रमुख गण है- भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, जय, विजय बताए गए हैं।

ऐसी मान्यता है कि ये गण मनुष्य से अलग थे और किसी दूसरे लोक से आए थे। इनका स्वरूप अत्यंत भयानक हैं, इनके शरीर में हड्डियां नहीं होती थी और आकार विचित्र सा होता था। ये सभी गण जोर-जोर से शोर करते हैं। इनकी भाषा महादेव के अतिरिक्त कोई नहीं समझ सकता। ये गण शिव के अतिरिक्त किसी से नहीं डरते। उन्हें सनकी स्वभाव का भी कहा जाता है। ये महादेव के अतिरिक्त किसी का कार्य नहीं करते हैं। महादेव इन्हें प्रेम करते हैं।

ऐसी मान्यता है कि शिव 15000 साल पहले मानसरोवर आए थे। मानसरोवर को टेथिस समुद्र का एक अवशेष के रूप में जाना जाता है और ऐसा माना जाता है कि मानव सभ्यता की शुरुआत उस समय हुई थी. वर्तमान में वो समुद्र अब एक झील में बदल चुका है। बता दें पिशाच, दैत्य, दानव, और भूत भी भोलेनाथ के गण है और हमेशा उनके समीप रहते हैं।

भगवान गणेश भी शिव के गण हैं

क्या आप जानते हैं भगवान गणेश को गणपति की जगह गजपति क्यों नहीं कहा जाता है। एक कथा के अनुसार भूलवश भगवान शिव द्वारा अपने पुत्र गणेश का सिर काट दिया गया था। इस घटना के बाद भगवान शिव ने गणेश को जीवित करने के लिए हाथी का सिर लगाया था। तभी से उन्हें गणपति कहा जाता है। लेकिन यहां बात गजपति और गणपति नाम को लेकर हो रही है।

वैसे अगर गणेश जी को हाथी का सिर लगाया गया था, तो हमें तो उन्हें गजपति कहना चाहिए, लेकिन हम उन्हें गणपति कहकर संबोधित करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि भगवान शिव ने जिस हाथी का सिर गणेश को लगाया था वो स्वयं एक गण था। जी हां, भोलेनाथ ने अपने एक गण का सर निकालकर गणेश को लगा दिया था। इसलिए हम उन्हें गणपति कहते हैं गजपति नहीं।

भगवान शिव के गणों के नाम

भगवान शिव की सुरक्षा और उनके आदेश को मानने के लिए उनके गण सदैव तत्पर रहते हैं। उनके गणों में भैरव को सबसे प्रमुख माना जाता है। उसके बाद नंदी का नंबर आता और फिर वीरभ्रद्र।

जहां भी शिव मंदिर स्थापित होता है, वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरव जी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। भैरव दो हैं- काल भैरव और बटुक भैरव। दूसरी ओर वीरभद्र शिव का एक बहादुर गण है जिसने शिव के आदेश पर दक्ष प्रजापति का सिर धड़ से अलग कर दिया। देव संहिता और स्कंद पुराण के अनुसार शिव ने अपनी जटा से ‘वीरभद्र’ नामक गण उत्पन्न किया।

इस तरह उनके ये प्रमुख गण थे- भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। ये सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं और प्रत्येक मनुष्य, आत्मा आदि की खैर-खबर रखते हैं।

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