बिलासपुर : राज्य की सत्ता पर प्रभावशाली ढंग से वापसी करने के बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के सामने दिग्गज नेताओं की सत्ता में सहभागिता को लेकर चुनौती भी कम नहीं है। बिलासपुर व सरगुजा संभाग में आधा दर्जन ऐसे नेता हैं जिनकी सत्ता में सहभागिता की स्वाभाविक दावेदारी बनते दिखाई दे रही है।
बिलासपुर संभाग की भाजपाई राजनीति पर नजर डालें तो छत्तीसगढ़ राज्य गठन से पहले संभाग के दो कद्दावर नेता धरमलाल कौशिक और अमर अग्रवाल मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य थे। राज्य गठन के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में लौटे। वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ में सियासी पारी की शुरुआत हुई। तब राज्य की सत्ता कांग्रेस के हिस्से आई।
वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में अमर व धरम बिलासपुर और बिल्हा विधानसभा से चुनाव जीतकर मध्य प्रदेश विधानसभा पहुंचे थे। वर्ष 2003 में छत्तीसगढ़ राज्य में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। दोनों दिग्गज चुनाव जीते। राज्य की सत्ता भाजपा को मिली। दोनों दिग्गज मंत्रीमंडल के सदस्य बने। बीते डेढ़ दशक तक सत्ता के गलियारे में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
पूर्व केंद्रीय मंत्री व प्रदेश भाजपाध्यक्ष विष्णुदेव साय व पूर्व राज्यसभा सदस्य व वर्तमान में विधायक रामविचार नेताम भी सत्ता के केंद्र में रहे। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद दोनों संभाग में सियासी संतुलन के हिसाब से देखें तो इन चारों दिग्गजों के अलावा केंद्रीय मंत्री व भरतपुर सोनहत से निर्वाचित विधायक रेणुका सिंह, रायगढ़ के विधायक ओपी चौधरी, सांसद व पत्थलगांव की विधायक गोमती साय की स्वाभाविक दावेदारी सामने आने लगी है।
समर्थक कार्यकर्ता इंटरनेट मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म के जरिए अपने अंदाज में लाबिंग करते नजर भी आ रहे हैं। प्रदेश भाजपा के दिग्गज नेताओं के बीच इस बात को लेकर चर्चा होने लगी है। भाजपा की राजनीति में रुचि रखने वाले और कार्यकर्ताओं के बीच इस बात की अटकलें भी लगाई जा रही है कि बिलासपुर व सरगुजा संभाग से किन दिग्गजों को राज्य की सत्ता में सहभागिता का अवसर मिलेगा। यह भी चर्चा हो रही है कि जिन्हें राज्य की सत्ता में सहभागिता का अवसर नहीं मिलेगा उनको निगम मंडल सहित अन्य महत्वपूर्ण जगहों पर राजनीतिक रूप से एडजस्ट करने की कोशिशें भी होंगी। स्वाभाविक दावेदारी, वरिष्ठता और क्षेत्र की जनता के बीच जुड़ाव का भी ध्यान रखा जाएगा।
धरम की प्रोफाइल बड़ी
बिल्हा विधानसभा क्षेत्र से लगातार दूसरी बार चुनाव जीतकर बिल्हा में रिवाज की परंपरा को तोड़ने वाले धरममलाल कौशिक को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में पराजित होने के बाद कौशिक को प्रदेश भाजपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में विजयी होने के बाद नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभाई। ये अलग बात है कि चुनाव के ठीक पहले प्रदेशाध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष में बदलाव करते हुए दो नए चेहरे पर भाजपा ने दांव खेला था। तब कौशिक को राष्ट्रीय कार्यसमिति में जगह दी गई थी। विधानसभाध्यक्ष का पद भी संभाल चुके हैं।
अरुण साव को लेकर अटकलें तेज
प्रदेश भाजपाध्यक्ष व लोरमी विधानसभा सीट से निर्वाचित विधायक व सांसद अरुण साव के राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलें तेज होने लगी हैं। समर्थक कार्यकर्ता के अलावा लोग उनके चेहरे में सीएम का चेहरा तलाशने लगे हैं। उनकी स्वाभाविक दावेदारी को लेकर अटकलें भी लगाई जा रही हैं।