Dhar Bhojshala : 4 दिवसीय बसंत उत्सव पर प्रशासन अलर्ट, सुरक्षा बल मुस्तैद, जानिए इसका इतिहास
Dhar Bhojshala : मध्य प्रदेश के धार स्थित ऐतिहासिक भोजशाला को 4 दिवसीय बसंत उत्सव के लिए दुल्हन की तरह सजाया गया है। भगवा झंडे से सजावट की गई है। इन तैयारियों के बीच प्रशासन अलर्ट मोड पर है। सुरक्षा बल मुस्तैद हैं।
महाराजा भोज स्मृति बसंतोत्सव समिति महामंत्री सुमित चौधरी ने बताया कि “आज भोजशाला परिसर को दुल्हन की तरह सजाया गया। भगवा झालर लगाए गए हैं। महिलाएं हवन कुंड लीप रही हैं। वहीं युवा बांस पर भगवा ध्वज को लगाकर भोजशाला को भगवामय कर रहे हैं।” इस उत्सव के लिए अतिरिक्त पुलिस बल बुलाया गया है। सुरक्षा के चाक चौबंद इंतजाम किए गए हैं।
बता दें कि सूर्योदय के साथ हवन पूजन कर मां वाग्देवी के तेल चित्र को बग्गी में विराजित कर जुलूस के रूप में भोजशाला लाया जाता है। तेल चित्र को विराजित कर महाआरती की जाती हैं। साथ ही धर्म सभा का आयोजन किया जाता है जिसे उत्तम स्वामी संबोधित करेंगे। वहीं भारी तादाद में श्रद्धालु भोजशाला पहुंचेंगे और मां वाग्देवी के दर्शन पूजन करेंगे।
आपको बता दें कि यह इमारत ASI के अधीन है। हर मंगलवार यहां हिंदू हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। वहीं मुस्लिम शुक्रवार को नमाज अदा करते हैं। बसंत पंचमी पर हिंदुओं को पूजा अर्चना की दिन भर अनुमति भारतीय पुरातत्व विभाग ने दी है। लेकिन शुक्रवार और बसंत पंचमी एक साथ, एक दिन होने पर दोनों पक्ष पूजा और नमाज को लेकर अड़े रहते हैं। हिन्दू दिन भर पूजा करना चाहते हैं, वहीं मुस्लिम पक्ष अपने वक्त पर नमाज अदा करना चाहते हैं। ऐसे में पूजा और नमाज करवाना प्रशासन के लिए चुनौती से कम नहीं होता है। गौरतलब है कि बसंत पंचमी पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक पूजा करने का आदेश है।
जानिए क्या है इतिहास?
भोजशाला ASI के अधीन है जिसे हिन्दू भोजशाला कहते हैं तो मुस्लिम कमाल मौलाना मस्जिद। कहते हैं कि राजा भोज की नगरी धार में कोई भी गंवार नहीं होगा, सभी अकल मंद होंगे। यह वरदान राजा भोज को मां सरस्वती ने दिया था। भोजशाला और कमाल मौलाना की दरगाह एक ही परिसर में है। भोजशाला के बाहरी परिसर मे कमाल मौलाना की दरगाह स्थित है।
दूर-दूर से शिक्षा ग्रहण करने आते थे विद्वान
राजा भोज ने 1034 में सरस्वती कण्ठाभरण की स्थापना की थी। इसे शिक्षा का मंदिर भी कहा जाता था। यह संस्कृत पाठशाला गुरुकुल था। यहां दूर-दूर से विद्वान शिक्षा ग्रहण करने आते थे। इस भवन में माघ, बाणभट्ट कालिदास, भवभूति,भास्कर भट्ट, धनपाल, मानतुंगाचार्य जैसे प्रकांड विद्वान अध्ययन करते थे और अध्यापन करवाते थे।
राजा भोज ने लिखे 84 ग्रन्थ
कवि मदन रचित परिजन मंजरी आज भी प्रवेश द्वार से अंदर बाई ओर संरक्षित है। भवन के मध्य में विशाल यज्ञ कुंड है। भोजशाला में अनेक ग्रंथों यथा समरांगन सूत्रधार, युक्ति कल्पतरु, चंपू रामायण, अवनी कुर्म शतकम, सरस्वती कंठभरण, योग शास्त्र के साथ ही स्वयं राजा भोज ने ज्योतिष वास्तु शास्त्र आयुध शास्त्र जलयान विज्ञान दर्शनशास्त्र आदि सभी विषयों पर अधिकार पूर्वक 84 ग्रंथ लिखे। भोजशाला में 84 खंभे हैं तो धार में 84 चौराहे थे।
यहां लिखे गए कई ग्रन्थ
राजा भोज स्वयं विद्वान होने के साथ ही विद्वानों के संरक्षक भी थे। भोजशाला में जैन संप्रदाय के अभय देव जी ने सुरी पद प्राप्त किया था। काशी के महान पंडित भाव बृहस्पति ने शेव संप्रदाय के सिद्धांतों का अध्ययन एवं प्रतिपादन भोजशाला में ही किया। बौद्ध संप्रदाय के महान संत बंश बल ने अपने महान ग्रंथ तिथिसारणीका सहित अनेक ग्रंथ भोजशाला में ही लिखे।
जानिए कैसे नष्ट हुई भोजशाला
स्थापना से 271 वर्षों तक भोजशाला ज्ञान विज्ञान का केंद्र बनी रही। 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला सहित अनेक मान बिंदुओं को ध्वस्त किया। 1401 में दिलावरखां गोरी ने मालवा को अपना राज्य घोषित कर विजय मंदिर को नष्ट किया।1514 में मोहम्मद शाह खिलजी द्वितीय ने आक्रमण कर भोजशाला के स्वरूप को परिवर्तित करने का प्रयत्न किया।
1456 में कमाल मौलाना की दरगाह का निर्माण मोहम्मद ख़िलजी ने करवाया। 1875 में भोजशाला परिसर की खुदाई के दौरान मां सरस्वती की प्रतिमा निकली, जिसे 1880 में मेजर किन केड अपने साथ लन्दन ले गए। धार स्टेट द्वारा ही मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की इजाजत 1935 में दी गई, जिसे स्टेट के दिवान नाडकर ने दी थी।
भोजशाला 1909 में इसे संरक्षित घोषित कर दिया गया। 1995 में पूजा और नमाज को लेकर विवाद हुआ। 1997 में तात्कालिक सरकार द्वारा हिन्दुओं के लिए भोजशाला में जाना प्रतिबंधित कर दिया गया और शुक्रवार को नमाज की अनुमति दी गयी थी। 2001 में बसन्तोत्सव पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। 18 से 20 फरवरी 2003 की धार में तनाव रहा।
भारतीय पुरातत्व विभाग ने हिंदुओं को प्रति मंगलवार को फूल और चावल ले जाने और मुस्लिमों को हर शुक्रवार नमाज अदा करने की अनुमति दी गई थी। यही आदेश शासन और प्रशासन की गले की हड्डी बन गया। साल 2006, 2013, 2016 और अब 2026 में बसंत पंचमी और शुक्रवार एक ही दिन आयेंगे। वहीं आपको बता दे की भोजशाला का आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया सर्वे कर चुका है, जिसकी रिपोर्ट न्यायालय को सुपुर्द की जा चुकी है।