युगांडा में समलैंगिक संबंधों पर मिलेगी मौत की सजा, बाइडन ने बताया ‘मानवाधिकारों का उल्लंघन’

वाशिंगटन : अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने युगांडा सरकार द्वारा समलैंगिक संबंधों पर पूरी तरह से बैन लगाने के फैसले की जमकर आलोचना की है। उन्होंने इसे ‘सार्वभौमिक मानवाधिकारों का उल्लंघन’ बताया है।
किसी को जीवन भर डर के साए में नहीं रहना चाहिए: बाइडन
अमेरिकी राष्ट्रपति ने युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसे वेनी की आलोचना करते हुए कहा कि किसी को भी जीवन भर डर के साए में नहीं रहना चाहिए या हिंसा या डर का शिकार होना चाहिए। उन्होंने इस कानून को तुरंत निरस्त करने की मांग की। बाइडन ने एक आधिकारिक बयान में कहा, युगांडा में समलैंगिक संबंधों पर बैन और मृत्युदंड का प्रावधान करना मानवाधिकारों का दुखद उल्लंघन है। यह युगांडा के लोगों के योग्य नहीं है। यह पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक विकास की संभावनाओं को खतरे में डालता है।
जब से समलैंगिकता विरोधी अधिनियम पेश किया गया, तब से एलजीबीटीक्यूआई+ माने जाने वाले युगांडा के लोगों को निशाना बनाने वाली हिंसा और भेदभाव की रिपोर्टें बढ़ रही हैं।
मैं दुनिया भर के लोगों, युगांडा में कई लोगों के साथ, इस कानून को तत्काल निरस्त करने की मांग में शामिल हूं। किसी को भी जीवन भर भय में नहीं रहना चाहिए या हिंसा और भेदभाव का शिकार नहीं होना चाहिए। यह गलत बात है।
बाइडन ने अमेरिकी सुरक्षा परिषद को दिए खास निर्देश
व्हाइट हाउस के एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, बाइडन ने कहा कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को युगांडा के साथ अमेरिकी जुड़ाव के सभी पहलुओं पर इस कानून के निहितार्थ का मूल्यांकन करने का निर्देश दिया है, जिसमें एड्स राहत के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति की आपातकालीन योजना (पीईपीएफएआर) और सहायता और निवेश के अन्य रूपों के तहत सुरक्षित रूप से सेवाएं देने की हमारी क्षमता शामिल है।
युगांडा का नया एंटी- एलजीबीटीक्यू कानून क्या है?
युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने समलैंगिक संबंधों पर बैन लगाने वाले कानून को मंजूरी दी है।
इस कानून का उल्लंघन करने वालों को मौत की सजा भी हो सकती है।
नया कानून समलैंगिक संबंधों पर मौत की सजा और 20 साल तक की जेल का प्रावधान है।
अगर कोई व्यक्ति समलैंगिक संबंध बनाने की कोशिश करते हुए पकड़ा जाता है तो उसे 10 साल तक की जेल हो सकती है।
एंटी-एलजीबीटीक्यू विधेयक 2023 को युगांडा की संसद में मार्च में पेश किया गया था।