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देश की सबसे लंबी टनल…दो लाख हेक्टेयर जमीन को मिलेगा पानी, इस सितंबर मंदाकिनी से मिलेगी नर्मदा..

8-8 घंटे की तीन शिफ्ट में 40 मजदूर, 8 टेक्नीशियन और एक डॉक्टर ट्रेन से एक साथ टनल के अंदर इस उम्मीद के साथ जाते हैं, ताकि सब साथ लौट सकें। कई बार तो तेजी से रिसने वाले पानी की आवाज भी डराती है, लेकिन अब जबकि दोनों तरफ से बन रही टनल के सिरे करीब आ गए हैं तो उत्साह है।

बात हो रही है कटनी और सिहोरा के बीच स्लीमनाबाद की पहाड़ी में बन रही देश की पानी वाली सबसे लंबी टनल की। टनल सितंबर 2023 तक पूरी हो जाएगी। मार्च 2008 में टेंडर होने के बाद इसे बनने में 15 साल से ज्यादा वक्त लग गया। इसकी शुरुआती लागत 799 करोड़ थी, जो बढ़कर 1326 करोड़ हो गई है। कुल 11.95 किमी में से 8.95 किमी टनल बन चुकी है। तीन किमी का हिस्सा बचा है।

अपर नर्मदा जोन (जबलपुर) चीफ इंजीनियर राममणि शर्मा कहते हैं कि सितंबर 2023 में टनल जुड़ जाएगी तो कटनी, रीवा-सतना की सूखी जमीन नम होने लगेगी। रबी सीजन में दो लाख हेक्टेयर जमीन को पानी मिल जाएगा। प्रोजेक्ट से जबलपुर और कटनी शहरों को भी पानी मिलेगा।

 

दोनों तरफ से बन रही टनल में एक तरफ जर्मन और दूसरी तरफ अमेरिकन कटर मशीन लगी है। अमेरिकन 2011 से और जर्मन 2016 से काम कर रही है। इस प्रोजेक्ट की पहली डेडलाइन 25 जुलाई 2011 थी। इसके बाद 7 डेडलाइन बदली। आखिरी डेडलाइन जून 2023 रखी गई। निर्माण एजेंसी के डायरेक्टर शरद कुमार भी मानते हैं कि इतनी बाधाएं कभी नहीं आईं, जितनी इस प्रोजेक्ट में मिली।

प्रोजेक्ट की बाधाओं का हल कुछ इस प्रकार ऐसे निकला

रुका हुआ काम दोबारा शुरू करने के लिए सरकार ने ठेकेदार की 25 करोड़ की बाजार की देनदारी खुद दी। बैंक गारंटी के पैसा वापस लिया।

टनलिंग के दौरान मिट्टी धंस रही थी। रिपेयर करने में किसान बाधा बन रहे थे, लिहाजा 20 मीटर की पूरी पट्टी को अस्थाई रूप से शासन ने अधिग्रहित किया।

स्लीमनाबाद नगर के नीचे टनल है। ऊपर चार बस्तियां हैं। घर टूटने पहले परिवारों का अस्थाई विस्थापन किया। हर व्यक्ति को प्रतिदिन 300 रुपए भोजन के लिए दिए जा रहे हैं।

जगह-जगह केविटीज होने के कारण टनलिंग मशीन के कटर को टूटने से बचाने के लिए बड़ी संख्या में ट्यूबवैल खोदकर पानी निकाला।
टनलिंग मशीन बार-बार खराब हो रही है। अमेरिका से विशेषज्ञ बुलाए गए और दिल्ली मेट्रो के इंजीनियर को कंसलटेंट बनाया गया। उनकी निगरानी शुरू हुई। इसी के बाद कैमिकल ग्राउंडिंग का काम शुरू हुआ।गाद और पानी को निकालने के लिए तीन अतिरिक्त एक्स्कवेटर लगाए गए।
मशीन से 1200 मीटर टनलिंग करने के बाद उस जगह की मरम्मत की जाती है।
मरम्मत के लिए मशीन तक पहुंचना पड़ता है, इसके लिए सतह से 100 फीट का गड्ढा बनाकर नीचे जाया जाता है। इसके लिए किसानों से दो हैक्टेयर बतौर मुआवजा देकर ली गई है।

खुदाई के दौरान 20 हजार लीटर पानी प्रति मिनट बाहर आ रहा है। जिससे अंदर जाने वाली रेल डूब जाती है। इस पानी को निकालने के लिए टनल के अंदर ट्रांसफार्मर लगाए गए हैं और 150 से 200 हॉर्स पॉवर के 10 पंप स्थापित किए गए हैं।
बड़ी चूक भी हुई
टेंडर के समय किसी को यह आभास नहीं था कि अंदर जटिल भूगर्भीय संरचना है। खुदाई से पहले रिसर्च नहीं हुई। काम की मियाद भी 40 माह रखी गई, जबकि हर माह 200 मीटर ही टनल बन सकती थी। इस हिसाब से ही 60 माह लगते, इसलिए मियाद 65 माह होनी चाहिए थे। जो नहीं थी।

कहां कितनी सिंचाई

जबलपुर : 60 हैक्टेयर
कटनी : 21 हजार 823 हैक्टेयर
सतना : 1 लाख 59 हजार 655 हैक्टेयर
रीवा : 3 हजार 532 हैक्टेयर
कोट्स
पानी, गाद और मिट्टी के धंसने के साथ पत्थर अन्य दिक्कतों के बीच टनल बना रहे हैं। राज्य सरकार का पूरा सहयोग है। बीच में टनल बंद करके पानी लिफ्ट कर ले जाने का विचार था, लेकिन इसे इसलिए छोड़ा क्योंकि बिजली पर निर्भरता बढ़ जाती। ट्रिपिंग में पानी तेज बहाव से पीछे लौटता। नुकसान हो सकता था। अब टनल पूर्णता पर है। सितंबर 2023 तक पानी खेतों तक पहुंच जाएगा।
– प्रमोद कुमार शर्मा, मेंबर (इंजीनियरिंग), नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण

इसे बनाने वाले कहते हैं- हम 40 लोग एक साथ टनल में जाते हैं, ताकि सब लौटें

गंगा के कछार में आएगा नर्मदा का पानी ..

बरगी डेम की बांई नहर के जरिए नर्मदा के पानी को आगे जाकर चित्रकूट में प्रवाहित मंदाकिनी में मिलाया जाएगा। पानी नर्मदा कछार से सोन-टोंस कछार (गंगा कछार) में जाएगा। दो कछारों के जुड़ने से एक ऊंची रिज (इस स्थान से दोनों कछारों का बारिश में पानी के बहाव की दिशा का विभाजन होता है) को पार करना होगा। यह रिज स्लीमनाबाद नगर के पास है, जो लगभग 12 किमी चौड़ी है। इसी रिज को पार करने के लिए अंडर ग्राउंड टनल का निर्माण हो रहा है। टीम में सेंट्रल वॉटर कमीशन के इंजीनियर भी शामिल हैं।

दिल्ली मेट्रो की टनल से कम  की लागत..

दिल्ली मेट्रो 16 लाख रुपए प्रति मीटर बनी, जबकि यह टनल 5 लाख रुपए प्रति मीटर में बन रही है। आज के दौर में टनल का यह प्रोजेक्ट बनता तो लागत 2500 करोड़ होती।

 

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