मुंबई : गिनती के लोग ही हैं अब इस दुनिया में जिनकी अपनी यादों में हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम के दिनों की बातें शामिल होंगी। 78 साल पहले द्वितीय विश्व युद्ध को निर्णायक मुकाम तक लाने और इसके बाद पूरी दुनिया की तस्वीर बदल देने वाली इस घटना से पहले के कालखंड को सिनेमा के विशालतम परदे (आईमैक्स) पर उतारने का जीवट उन क्रिस्टोफर नोलन ने दिखाया है जिनके प्रशंसकों की तादाद जितनी अमेरिका में हैं उससे कहीं अधिक दुनिया के दूसरे देशों में हैं।
नोलन इस दौर के सबसे महान फिल्मकारों में कब के शामिल हो चुके हैं। वह उन चुनिंदा निर्देशकों में हैं जिनके प्रशंसकों की तादाद संभवत: विश्व सिनेमा में इस दौर में सबसे ज्यादा है। वह अपने आप में किवदंती बन चुके हैं और उनका सिनेमा हर बार रुपहले परदे पर एक ऐसा अध्याय लिखता है जिसकी प्रतिध्वनि अगले साल भर चलने वाले पुरस्कारों में सुनाई देती है। अगले साल के ऑस्कर पुरस्कारों में उनकी नई फिल्म ‘ओपनहाइमर’ कितनी श्रेणियों में नामांकित होगी, इस पर चर्चा फिल्म की रिलीज के पहले ही शुरू हो चुकी है
नाभिकीय हथियारों के जनक की कहानी
फिल्म ‘ओपनहाइमर’ नाभिकीय हथियारों के जनक कहे जाने वाले जे आर ओपनहाइमर के जीवन की उन घटनाओं को दर्शाती है जिसमें एक इंसान अपने दिल और अपने दिमाग के बीच संतुलन साधने की कोशिश में कुछ ऐसा कर बैठता है जिसकी आत्मग्लानि उसे बरसों तक सालती रहती है। डायनामाइट के आविष्कार अल्फ्रेड नोबेल के साथ भी यही हुआ। उनके आविष्कार का पश्चाताप नोबेल पुरस्कार हैं और उनमें भी सबसे अहम रहता रहा है नोबेल शांति पुरस्कार। ओपनहाइमर अमेरिका में शरण लेने वाले यहूदी परिवार में जन्मे। जर्मनी से उनका खून का और पढ़ाई का दोनों का रिश्ता रहा और जर्मनी के तानाशाह हिटलर के छेड़े द्वितीय युद्ध को इसके अंजाम तक पहुंचाने में ओपनहाइमर की अगुआई में बने नाभिकीय बम की सबसे बड़ी भूमिका रही। फिल्म ‘ओपनहाइमर’ इसी नाभिकीय बम या परमाणु बम के बनने की कहानी है।
नोलन के सिनेमा का एवरेस्ट
52 साल के क्रिस्टोफर नोलन ब्रिटेन में जन्मे। कर्मभूमि उनकी हॉलीवुड रही। अब तक पांच ऑस्कर पुरस्कारों, इतने ही बाफ्टा पुरस्कारों और छह गोल्डन ग्लोब पुरस्कारों के लिए नामित हो चुके नोलन की फिल्म ‘ओपनहाइमर’ बॉक्स ऑफिस और ऑस्कर के दरवाजों पर अब तक की सबसे तगड़ी दस्तक कही जा सकती है। फिल्म जे रॉबर्ट ओपनहाइमर के उन दिनों को कैमरे में कैद करती है जब उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दरम्यान 1942 में मैनहट्टन प्रोजेक्ट के लिए चुना गया। अगले साल वह इसके मुखिया बने और न्यू मेक्सिको स्थित लॉस एलामोस प्रयोगशाला में उन हथियारों का विकास शुरू हुआ जिसके अब तक के इकलौते प्रयोग ने ही दुनिया की शक्ल बदल दी। इस प्रयोग ने नाभिकीय हथियारों का ऐसा डर बनाया कि इनकी सुगबुगाहट भर से दुनिया में हलचल मचने लगती है। सैकड़ों फिल्में ऐसे हथियारों की चोरी या उनकी तलाश पर बनी है। बीते हफ्ते रिलीज हुई फिल्म ‘मिशन इंपॉसिबल 7’ भी ऐसे ही एक नाभिकीय हथियारों की तलाश पर बनी कहानी है।