CG शिक्षा का मंदिर बना मवेशियों का तबेला : परिवार ने किया कब्ज़ा, अधर में लटका बच्चो का भविष्य

जशपुर : सरकारी स्कूल बच्चों के भविष्य की नींव रखने के लिए होते हैं, लेकिन क्या हो अगर वही स्कूल मवेशियों का तबेला बन जाए? कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है पत्थलगांव विकासखंड के ग्राम कुकरगांव में, जहां शासकीय प्राथमिक शाला मोहनीपुरी अब पढ़ाई-लिखाई का नहीं, बल्कि दूध-दही के कारोबार का केंद्र बन चुका है। जहां कभी बच्चों की मासूम आवाजें गूंजती थीं, वहीं अब गाय-भैंसों की रंभाने की आवाजें सुनाई देती हैं। कभी ब्लैकबोर्ड पर अक्षर उकेरे जाते थे, अब वहीं दीवारों पर मक्खियाँ भिनभिनाती हैं। स्कूल में बैठने की बेंच-कुर्सियां तो नहीं हैं, लेकिन भूसे और चारे के ढेर जरूर मौजूद हैं।

स्कूल के ताले खुले, तो मिला डेयरी फार्म

करीब आठ साल पहले, इस स्कूल को नजदीकी विद्यालय में मर्ज कर दिया गया था। लेकिन इसे सील करने की बजाय “ओपन टू ऑल” छोड़ दिया गया। धीरे-धीरे, एक ग्रामीण परिवार ने इसे अपना घर बना लिया, और बाकी जगह पर मवेशियों का कब्जा हो गया। अब स्कूल के कमरों में लोग नहीं, बल्कि गाय-भैंसों के तबेले बने हुए हैं। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन की लापरवाही के कारण यह स्कूल धीरे-धीरे बदहाल होता चला गया। पहले यह खंडहर में बदला और फिर धीरे-धीरे इसे मवेशियों के चारागाह के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा।

बहुत देर कर दी,अधिकारी आते-आते

मामला उजागर होते ही शिक्षा विभाग में हलचल मच गई। विकासखंड शिक्षा अधिकारी विनोद पैंकरा ने बताया कि जैसे ही मामले की जानकारी मिली, तुरंत जांच के आदेश दे दिए गए। संकुल समन्वयक से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा और दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। स्कूल बनेगा फिर से शिक्षा मंदिर या जारी रहेगा दूध-दही का धंधा? अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या प्रशासन इस स्कूल को फिर से बच्चों की पढ़ाई के लिए खोलेगा, या फिर इसे यूं ही मवेशियों के लिए छोड़ा जाएगा?

ग्रामीणों की मांग है कि स्कूल को दोबारा दुरुस्त किया जाए, ताकि गांव के बच्चों को घर के पास ही शिक्षा का अधिकार मिल सके। लेकिन प्रशासन इसे कितना गंभीरता से लेता है, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। क्या सरकारी स्कूल इसी तरह गाय-भैंसों के तबेले बनते रहेंगे? या प्रशासन जागेगा? अब देखना यह है कि स्कूल में फिर से बच्चे लौटेंगे या दूध-दही का कारोबार ही चलता रहेगा।

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