बेमेतरा। कृषि भूमि पर एथेनाल और पॉवर प्लांट लगाने के विरोध में बेमेतरा जिले के रांका और आसपास के तीस गांवों के लोगों ने रविवार को विशाल महापंचायत बुलाई है. रांका और कठिया के समस्त व्यापारियों ने रविवार को अपनी दुकानें बंद रख कर इस महापंचायत को समर्थन करने का निर्णय लिया है. वहीं बिना विश्वास में लिए गुपचुप एनओसी जारी करने पर सरपंच, सचिव के प्रति ग्रामीणों में बहुत गुस्सा है.
बंजर जमीन में लगने वाले प्लांट की गांव के अंदर कृषि भूमि में लगाने के विरोध में रांका और पथर्रा सहित आसपास के 30 गांवों के लोगों द्वारा 8 सितंबर को महापंचायत का आयोजन रखा गया है, जहां शासन-प्रशासन द्वारा उद्योग के हित की सर्वोपरी मानते हुए जनता की आवाज को दबाने हर तरह की युक्ति अपनाए जाने से किसानों में भारी आक्रोश पनप रहा है. विगत दो तीन माह से इसके लिए गांव-गांव में लगातार बैठकें की जा रही है.
सुयश बायो फ्यूल के प्रोजेक्ट रिपोर्ट के अनुसार, शिवनाथ नदी से आठ लाख लीटर पानी प्रतिदिन इस प्लांट के लिए लिया जाना प्रस्तावित है, वही पथर्रा प्लांट के लिए प्रतिदिन 4 लाख लीटर पानी का दोहन किया जाना है. उसके साथ ही सरदा में निर्माणाधीन में रायजन स्पंज आयरन द्वारा लाखों लीटर पानी का दोहन शिवनाथ से ही किया जाएगा. इसके वेस्ट को इसी नदी में प्रवाहित किया जाएगा. एथेनाल प्लांट जैसे गंदी बदबूदार प्लांट को चार से पांच किलोमीटर के दायरे में तीन चार प्लांट को कैसे अनुमति दी जा रही है. इससे ग्रामीण किसान स्तब्ध है. उल्लेखनीय है कि ग्राम कठिया में भी एथेनाल प्लांट प्रस्तावित है.
तीन वर्षों से किसान कर रहे हैं विरोध
रांका में जब से सुयश बायो फ्यूल के लिए भूमि के डायवर्सन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है, तब से लेकर आज तीन वर्षों से यहां के किसान विरोध कर रहे हैं. किसानों का कहना यह कि प्लांट निर्जन क्षेत्र में बंजर जमीन में लगने वाला प्लांट है. इस क्षेत्र में भैंसा में संचालित प्लांट की भयंकर बदबू और प्रदूषण ने आग में घी डालने का काम कर रही है. इस क्षेत्र के लोग लगातार भैंसा गांव में संचालित प्लांट से होने वाली बदबू और प्रदूषण का अवलोकन कर रहे है.
भैंसा और उसके आसपास के गांव के ग्रामीणों से रू-ब-रू होने के बाद उनकी परेशानी सुनने और स्थल का मुआयना करने के बाद इस क्षेत्र की जनता में शासन-प्रशासन के प्रति भयंकर आक्रोश पनप रहा है और उसी की परिणीति स्वरूप महापंचायत का आयोजन रखा जा रहा है. पहले जहां केवल रांका और पथर्रा के ग्रामीण विरोध कर रहे थे. वहीं अब परिस्थितिवश इसका दायरा आसपास के 30-35 गांवों तक फैल चुका है.