CG मौनी अमावस्या : तन-मन की शुद्धि का पवित्र दिन, स्नान-दान से मिलता है पुण्य
रायपुर : चन्द्रमा के घटते–घटते, माह में एक बार लुप्त हो जाने की तिथि अमावस। साल भर में बारह बार पड़ने वाली अमावस तिथियां अपने आप में सभी महत्वपूर्ण होती हैं परन्तु भारतीय संस्कृति में माघ माह की अमावस्या का विशेष महत्व है। हर महीने आने वाली अमावस्या को किसी न किसी रूप में पूजा, ध्यान और साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है। इनमें से मौनी अमावस्या, जो माघ मास में आती है, एक विशेष स्थान रखती है। इस दिन को मौन रहकर आत्मचिंतन, पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इसे धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
‘मौन’ का अर्थ है चुप रहना और स्वयं में स्थित होना। मौन व्रत धारण करने का तात्पर्य है कि, व्यक्ति बाहरी गतिविधियों से हटकर अपनी आंतरिक यात्रा पर ध्यान केंद्रित करे। मौनी अमावस्या का यह नाम ही इसीलिए पड़ा क्योंकि इस दिन मौन व्रत धारण करने की परंपरा है। मौनी अमावस्या व्रत का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मानसिक शांति प्राप्त करना है। मान्यता है कि, इस दिन मौन व्रत धारण करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। माघ मास में आने वाला यह दिन, स्वयं ही धार्मिक क्रियाओं के लिए पवित्र माना गया है। मौन साधकर अंतर्मन की शुद्धि और बाहर शरीर की शुद्धि के लिए विशेष स्नान की रीत… भीतर–बाहर की इस शुद्धि के लिए पवित्र नदियों से अधिक भला और क्या उपयुक्त होगा। पाप मोचनी गंगा, पुण्य सलिला यमुना और जागृत चेतना सरस्वती… प्रयागराज इन तीन नदियों का संगम स्थल, जो सम्पूर्ण जीवन की सरलता के लिए विश्व का केंद्र बिन्दु बन जाता है।
माघे मासे निमज्जन्ति त्रिस्रोतः पावने जले।
पुण्यं फलमवाप्नोति मुच्यते सर्वकिल्बिषैः॥
मौनं तपः प्रधानेषु पुण्यक्षेत्रे विशेषतः।
ध्यानं च शुद्धिसाधनं यत्र मुक्तिर्न संशयः॥
मौन रहने से मन शांत होता है और व्यक्ति अपनी आत्मा के करीब पहुंचता है। यह दिन आत्ममंथन और ध्यान के लिए अत्यंत उपयुक्त माना गया है। आधुनिक जीवन की आपाधापी में मौन रहना मानसिक शांति और आत्मसंतुलन का साधन बन सकता है। कुल मिलाकर मौन और पवित्र नदियों में स्नान, यह एक ऐसी आध्यात्मिक शुद्धिकरण प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति बाहरी और आंतरिक दोनों स्तरों पर स्वयं को पवित्र करता है।
मौनं तपः प्रधानेषु पुण्यक्षेत्रे विशेषतः।
ध्यानं च शुद्धिसाधनं यत्र मुक्तिर्न संशयः॥
दानं स्नानं तपो मौनं माघे मासे विशेषतः।
अक्षय्यं फलमाप्नोति ब्रह्मलोकं गमिष्यति॥
व्रत और स्नान के बाद तिल, गुड़, अनाज, वस्त्र या धन का दान कितनी सुन्दर परंपरा है। दाने चाहे तिल के बराबर छोटा हो, पर गुड़ सरीखे मीठे मन से किया गया हो। अनाज हर प्रकार की क्षुधा शांति का प्रतीक है, और धन–वस्त्र हर आडंबर से सहज अलग हो जाने की प्रक्रिया। संभवतः इसलिए मान्यता है कि, मौनी अमावस्या पर किया गया दान व्यक्ति के कर्मों को शुद्ध करता है और उसे जीवन में सुख-शांति प्रदान करता है। दान-पुण्य को मानवता का सबसे बड़ा धर्म माना गया है और यह परंपरा सनातन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
मौनी अमावस्या से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक प्रमुख कथानुसार इसी दिन राजा भागीरथ ने अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने का कार्य पूरा किया था। एक अन्य कथा के अनुसार, चैत्र प्रतिपदा अर्थात् गुड़ी पड़वा के दिन सृष्टि का निर्माण ब्रह्मा जी ने किया। नवनिर्मित पृथ्वी के संचालन के लिए ब्रम्हा जी ने ध्यान किया और मन की समस्त शक्ति से धरती के प्रथम युगल, ‘मनु–सतरूपा’ की उत्पत्ति माघ अमावस्या को हुई।
स्वयं ब्रह्म जी द्वारा मन को साधने से आरम्भ हुई यह परम्परा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आत्मचिंतन, आत्मशुद्धि और जीवन शोधन का सम्पूर्ण उपक्रम है। यह एक उत्सव है जिसमें आस्था, समर्पण से भरपूर हर मन, स्वयं को पूर्ण कर सके। यदि किसी कारण से संगम स्नान सम्भव न हुआ तब किसी भी नदी, ताल या सागर स्नान भी उतना ही फल प्रदायी है। वह भी न हो सके तब गंगा, यमुना, कावेरी, सरस्वती आदि पवित्र सप्त नदियों का आव्हान कर अपने स्थान पर भी स्नान करना पुण्य वर्धक ही है। हर तरह का समन्वय और पुण्य अर्जन के केवल भाव से ही भगवद प्राप्ति के असंख्य मार्ग इन अनन्त अनुभूतियों से ही तो सनातन का सौन्दर्य अपने चरम पर पहुंचने लगता है। मौनी अमावस पर स्नान, ध्यान और दान के मिश्रित सत्कर्म हम सभी के जीवन में प्रकाशित हों। ईश्वर चरण–प्रीति, सहज लब्ध हों। आप सभी को मौनी अमावस और महाकुम्भ की अनंत मंगलकामनाएं।
तपःश्रद्धा समायुक्तं मौनं धर्मस्य कारणम्।
माघे मासे तु यः कुर्यात् स याति परमं पदम्॥