CG – मॉनसून ब्रेक से किसानों पर संकट : बारिश की कमी से पीली पड़ी धान की फसल, बरसात नहीं हुई तो फसल बचाना भी मुश्किल

रायपुर। छत्तीसगढ़ में पिछले 10 दिनों से निर्मित मानसून ब्रेक से खरीफ फसलों के लिए संकट पैदा हो गया है। पिछले आठ दिनों से वर्षा नहीं होने के कारण खेतों की नमी सूख गई है तथा धान की फसल मुरझाने लगी है। दो-तीन दिन के भीतर वर्षा नहीं हुई तो धान की फसल को बचाना मुश्किल होगा। मौसम की बेरुखी के कारण इस बार प्रारंभ से ही सूबे के ज्यादातर जिलों में बारिश की कमी बनी रही। वर्षा के अभाव में समय पर कहीं भी धान की रोपाई नहीं हो सकी। जुलाई के अंत एवं अगस्त के प्रारंभ में मूसलाधार बारिश होने पर किसानों ने धान की रोपाई की।

धान की रोपाई के बाद मौसम की मेहरबानी से किसानों के चेहरे पर मुस्कान लौटी थी लेकिन मौसम के साथ छोड़ने से फिर से पूर्व की स्थिति निर्मित हो गई. पिछले लगभग दस दिनों से मानसून द्रोणिका हिमालय की तराई की ओर चली गई है, जिससे बारिश बंद हो गई है. प्रारंभ में वातावरण में मौजूद नमी के प्रभाव से छिटपुट वर्षा हुई, लेकिन 22 अगस्त से वर्षा बंद है. बारिश बंद होने के बाद तापमान बढ़ गया है तथा पूरे दिन तीखी धूप निकल रही है, जिससे खेतों की नमी तेजी से सूख रही है. निचले इलाके के फसल की स्थिति अभी ठीक है लेकिन ऊपरी इलाके की फसल बारिश की कमी से अब मुरझाने लगी है।

असिंचित क्षेत्र के खेतों में दरारें पड़नी शुरू हो गई हैं और फसल पीली पड़ गई है। फसल की स्थिति देख किसानों की चिंता बढ़ गई है. किसान सूख रही धान की फसल को बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं. दो-चार दिन के भीतर अच्छी वर्षा नहीं हुई तो धान की फसल को बचाना मुश्किल होगा. बारिश के अभाव में अन्य जलश्रोत भी सूखे पड़े हैं। अब तो गंगरेल सहित राज्य के कुछ और बांधों से सिचाई के लिए नहरों में पानी छोड़े जा रहे हैं।

राज्य के सरगुजा जिले के विकासखण्ड सीतापुर, बतौली, मैनपाट में अपेक्षाकृत अधिक वर्षा होने के कारण अभी धान की स्थिति ठीक है. अन्य क्षेत्रों में निचले इलाके की फसल तीन-चार दिनों में सूखने की कगार पर पहुंच जाएगी, जबकि ऊपरी इलाके की फसल पर मौसम का प्रभाव शुरू हो गया है. सरगुजा में अगस्त तक औसत 1250 मिमी वर्षा होती है लेकिन इस बार अब तक मात्र 681.0 मिमी वर्षा हुई है. सितंबर महीने में मानसून वापसी का क्रम प्रारंभ हो जाता है. वैसे भी सितम्बर में कम वर्षा होती है. सरगुजा में अभी तक औसत से लगभग आधी वर्षा हुई है. इस दौरान भारी वर्षा होने के कारण अधिकांश पानी निचले इलाकों की ओर बह गया तथा ऊपरी इलाके के खेतों की प्यास नहीं बुझा सकी। राज्य के बेमेतरा,दुर्ग,धमतरी,महसमुँद सहित कुछ और जिले भी इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं।

बचे समय में बारिश की पूर्ति होगी या नहीं इसको लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है. कई बार मानसून की वापसी के दौरान भी अच्छी वर्षा होती है. ऐसे में सितम्बर में पर्याप्त बारिश हुई तो धान की फसल समल जाएगी अन्यथा कृषकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. मौसम विज्ञानी सितम्बर के प्रारंभ में बंगाल की खाड़ी में हलचल होने एवं दो-तीन दिन के भीतर वर्षा होने की संभावना व्यक्त कर रहे हैं.

औसत से आधी वर्षा होने के कारण न तो अब तक भूजल के स्तर में सुधार हुआ है न ही पारंपरिक जल स्रोतों में ही पानी भरा है. मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को छोड़ दें तो गांव-गांव में बने अधिकांश जलाशय सूखे पड़े हैं. ग्रामीण जन जीवन के नियंत्रण का मुख्य स्रोत कुएं व तालाब सूखे पड़े हैं. ऐसे में किसान सूखे खेतों की सिंचाई के लिए तरस रहे हैं. जल स्रोतों की स्थिति देख ग्रामीणों को भविष्य में होने वाले जल संकट की भी चिंता सता रही है तथा इसका कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है।

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