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एएसआई के हाथ लगी बड़ी सफलता, तंत्र शास्त्र से खुला चोरी हुई 400 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक मूर्ति का रहस्य

tantra shastra

नई दिल्ली। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने आइजीआइ एयरपोर्ट पर कस्टम की ओर से पकड़ी गई चोरी की ऐतिहासिक मूर्ति का रहस्य पता नहीं लगा पा रहा था। कई किताबों और शास्त्रों में भी मूर्ति की जानकारी नहीं मिली। आखिर में एएसआइ ने तंत्र शास्त्र को खंगालना शुरू किया, जिससे सफलता मिली।

पीतल से बनी करीब 400 वर्ष पुरानी यह मूर्ति है, दस हाथ वाली ‘कोटरक्षी’ यानि मां चामुंडा की। इसकी कीमत करीब तीन करोड़ रुपये आंकी जा रही है। इसे 2021 में ओडिशा के बड़चना स्थित जिस मंदिर से चोरी किया गया था, अब वहीं पर प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश के बाद पिछले महीने स्थापित किया गया है।

इस ऐतिहासिक मूर्ति को चोरी कर विदेश ले जाया जा रहा था। इस मूर्ति के चोरी होने के एक वर्ष बाद एएसआइ को वर्ष 2022 में इसका पता चला। कस्टम ने इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर इस मूर्ति को रोक लिया था, जिसे हांगकांग ले जाया जा रहा था।

एएसआइ की टीम इस मूर्ति का निरीक्षण करने गई, कई बार के अध्ययन के बाद एएसआइ ने मूर्ति को विदेश भेजने से रुकवा दिया, लेकिन इस मूर्ति की ऐेतिहासिकता के बारे में एएसआइ को कहीं कोई जानकारी नहीं मिली। इस मूर्ति के चित्र लेकर संरक्षित मूर्तियों के बाद अन्य प्रमुख मूर्तियों के बारे में भी जानकारी ली, मगर कुछ पता नहीं चला। मूर्ति एक रहस्य बन गई थी। फिर एएसआइ को तंत्र शास्त्र में मूर्ति की खोज करने का विचार आया।

तंत्र शास्त्र से जुड़ी कई किताबों का अध्ययन करने के बाद एएसआइ ओडिशा की तंत्र विद्या से संबंधित तंत्र एंड सक्ता आर्ट आफ ओडिशा पुरतक तक पहुंची। यह ओडिशा में प्रचलित तंत्र विद्या से संबंधित है। प्रो. थामस डोनल्डसन की ओर से लिखित इस पुस्तक के तीसरे खंड में आखिर ऐतिहासिक मूर्ति का चित्र और जानकारी मिली।

इसके बाद मूर्ति के बारे में जानकारी लेने के लिए एएसआइ की एक टीम ओडिशा के बड़चना भेजी गई, जहां लोगों ने फोटो के जरिये मूर्ति को पहचान लिया। गांव के लोगों ने मूर्ति चोरी होने पर दर्ज कराई गई एफआइआर भी दिखाई।

मंदिर से मूर्ति चोरी होने के बाद से ग्रामीण डरे हुए थे। वहां यह बात प्रचलित थी कि मंदिर से मूर्ति चोरी होने का मतलब है कि कुछ अनिष्ट होने वाला है। कोटरक्षी की मूर्ति मिल जाने का पता चलने पर ग्रामीणों ने उसे वापस करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा।

उसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस मूर्ति को मंदिर को वापस करने के निर्देश दिया। एएसआइ ने पत्र मिलने पर इसे कस्टम के पास भेजा। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की पहल के बाद ऐतिहासिक मूर्ति को ओडिशा के उसी मंदिर में स्थापित किया गया, जहां से उसकी चोरी हुई थी। एएसआइ ने मूर्ति को अपने पास पंजीकृत कराने के साथ ही उसकी सुरक्षा के इंतजाम भी किए हैं।

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