भूपेश बघेल ने सरकार की धान खरीदी नीति पर उठाए सवाल, कहा- पिछली सरकार की नीतियों को सरकार ने बदला
रायपुर : पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिला कांग्रेस भवन में प्रेस कांफ्रेंस की. वहीं उन्होंने सरकार को कई मुद्दों पर घेरा साथ ही सरकार की धन खरीदी नीति पर भी सवाल उठाए. पिछली सरकार की कई नीतियों को बदलने का आरोप भी लगाया.पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सरकार की धान खरीदी नीति पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में तीन दिन बाद यानी 14 नवंबर से धान ख़रीदी शुरु होनी है. धान उपार्जन की हमारी सरकार की नीति को भाजपा सरकार ने बदल दिया है.
नई नीति के अनुसार 72 घंटे में बफ़र स्टॉक के उठाव की नीति को बदल दिया है. पहले इस प्रावधान के होने से समितियों के पास ये अधिकार होता था कि वे समय सीमा में उठाव न होने पर चुनौती दे सकें. अब जो बदलाव हुआ है, उसके बाद बफ़र स्ट्रॉक के उठाव की कोई सीमा ही नहीं है. पहले मार्कफ़ेड द्वारा समस्त धान का निपटान 28 फ़रवरी तक कर देने की बाध्यता रखी गई थी.
अब इसे बढ़ाकर 31 मार्च कर दिया गया है. धान ख़रीदी करने वाली 2,058 समितियों के लगभग 13000 कर्मचारी चार नवंबर से हड़ताल पर हैं. ऐसे में धान खरीदी करना कैसे संभव है. संग्रहण केंद्रों में धान अब दो महीने तक रखा रह रहेगा. यह एक तथ्य है कि धान में ख़रीदी के बाद सुखत की समस्या आती है. माननीय छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी इस बात का संज्ञान लिया है कि अगर सुखत होता है तो इसे लेकर नीति या नियम बनाया जाना चाहिए, वरना सरकार को लिखकर देना चाहिए कि सुखत नहीं होता है. हमारी सरकार में उपार्जित धान को मिलर सीधे ख़रीदी केंद्र से उठाते थे, नई नीति में ऐसा होना संभव नहीं दिखता है.
बीजेपी सरकार ने पिछली सरकार की नीतियों को बदला – भूपेश बघेल
भूपेश बघेल ने कहा कि धान मिलिंग के लिए हमारी सरकार ने प्रति क्विंटल 120 रुपए देने का निर्णय लिया था. जिसका परिणाम यह हुआ था कि प्रदेश भर में 700 नई राइस मिलें खुली थीं. अब सरकार ने मिलर के लिए 120 रुपए को घटाकर 60 रुपए कर दिया है. हमारी सरकार में उपार्जित धान को मिलर सीधे ख़रीदी केंद्र से उठाते थे, नई नीति में ऐसा होना संभव नहीं दिखता है. विष्णु देव साय सरकार की नई नीति से स्पष्ट है कि वह किसानों से धान ख़रीदी कम करना चाहती है. इस बार 160 लाख मिट्रिक टन धान ख़रीदी का लक्ष्य है. इसके लिए 14 नवंबर से 31 जनवरी तक का समय निर्धारित है|
शनिवार, रविवार और सरकारी छुट्टियों को घटाकर कुल 47 दिन मिल रहे हैं. इसका मतलब यह है कि प्रति दिन सरकार को लगभग साढ़े तीन लाख मिट्रिक टन की ख़रीदी प्रति दिन करनी होगी, तब जाकर लक्ष्य पूरा होगा. एक ओर कर्मचारी हड़ताल पर हैं और दूसरी ओर राइस मिलर धान उठाने से इनकार करना शुरु कर चुके हैं. न बारदाना उतरा है और न धान ख़रीदी केंद्रों की साफ़ सफ़ाई हुई है. न किसानों का पंजीयन हुआ है. कुल मिलाकर किसानों को प्रति क्विंटल 3100 रुपए देने का वादा करके भाजपा पछता रही है और पहले की ही तरह किसानों को फिर ठगने की तैयारी है. अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि धान के समर्थन मूल्य के बाद अंतर की राशि किसानों को कब और कैसे मिलेगी?