गुब्बारे बेचने वाले ने बना दी देश की सबसे बड़ी टायर कंपनी, आज 1.5 लाख रुपये का है एक शेयर

नई दिल्ली: देश का सबसे महंगा शेयर एमआरएफ कारोबार के दौरान 10 फीसदी तेजी के साथ 1.5 लाख रुपये पर पहुंच गया। पहली बार देश के किसी शेयर की कीमत इस स्तर पर पहुंची है। हालांकि बाद में यह 1.11 परसेंट की गिरावट के 134969.45 रुपये पर बंद हुआ। पिछले साल जून में इसकी कीमत एक लाख रुपये पहुंची थी और यह मुकाम हासिल करने वाला यह देश का पहला शेयर था। एमआरएफ देश में टायर बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है और दुनिया की टॉप 20 टायर कंपनियों में शामिल है। यह दोपहिया वाहनों से लेकर फाइटर विमानों के लिए टायर बनाती है। आज भले ही इसकी पहचान आज टायर बनाने वाली कंपनी के तौर पर है लेकिन कभी यह बच्चों के लिए गुब्बारे बनाया करती थी। इसका पूरा नाम मद्रास रबर फैक्ट्री है। आज इसका मार्केट कैप 57,242.47 करोड़ रुपये है। एक नजर एमआरएफ के कामयाब सफर पर…

केरल के एक ईसाई परिवार में जन्मे के. एम मैमन मापिल्लई (K. M. Mammen Mappillai) ने देश की आजादी से एक साल पहले यानी 1946 में चेन्नई में गुब्बारे बनाने की एक छोटी यूनिट लगाई। साल 1952 उनके लिए एक टर्निंग पॉइंट था। उन्होंने देखा कि एक विदेशी कंपनी टायर रिट्रेडिंग प्लांट को ट्रेड रबर की सप्लाई कर रही थी। रिट्रेडिंग पुराने टायरों को दोबारा इस्तेमाल करने लायक बनाने को कहते हैं और ट्रेड रबर टायर का ऊपरी हिस्सा होती है जो जमीन के साथ संपर्क बनाती है। मापिल्लई के दिमाग में एक बात खटकी। उन्होंने सोचा कि हमारे देश में ही ट्रेड रबर बनाने के लिए फैक्ट्री क्यों नहीं लगाई जा सकती।

विदेशी कंपनियों की छुट्टी

मापिल्लई को यह एक अच्छा मौका लगा। उन्होंने गुब्बारे के बिजनस से कमाई सारी दौलत ट्रेड रबर बनाने के बिजनस में लगा दी। इस तरह मद्रास रबर फैक्ट्री यानी एमआरएफ का जन्म हुआ। यह ट्रेड रबर बनाने वाली भारत की पहली कंपनी थी। इसलिए मापिल्लई का कंपटीशन विदेशी कंपनियों से था। कुछ ही टाइम में उनका बिजनस पॉपुलर हो गया। चार साल में ही कंपनी ने अपनी हाई क्वालिटी के चलते 50% बाजार हिस्सेदारी हासिल कर ली। हालत यह थी कि कई विदेशी मैन्यूफैक्चरर देश छोड़कर चले गए। मापिल्लई के बिजनस में साल 1960 में फिर एक टर्निंग पॉइंट आया। उनका बिजनस काफी अच्छा चल रहा था। लेकिन वे सिर्फ ट्रेड रबर तक सीमित नहीं रहना चाहते थे। मैम्मेन की नजर टायरों पर थी।

एमआरएफ एक अच्छा ब्रांड बन चुका था और कंपनी अब टायर मार्केट में उतरना चाहती थी। उस समय मापिल्लई को विदेशी कंपनियों से मदद की जरूरत थी। उन्होंने अमेरिका की मैन्सफील्ड टायर एंड रबर कंपनी से तकनीकी सहयोग लिया और टायर मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट स्थापित कर दी। साल 1961 में एमआरएफ की फैक्ट्री से पहला टायर बनकर निकला था। उसी साल कंपनी मद्रास स्टॉक एक्सचेंज में अपना आईपीओ लेकर आई थी। उस समय इंडियन टायर मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री पर डनलप, फायरस्टोन और गुडइयर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबदबा था। एमआरएफ ने भारत की सड़कों के अनुरूप टायर बनाना शुरू किया। एमआरएफ यहीं पर नहीं रुकी। एक अच्छी मार्केटिंग से कंपनी टायर मार्केट में छाने लगी।

मसलमैन की पावर

साल 1964 में MRF मसलमैन का जन्म हुआ था, जो कंपनी के टायर की मजबूती को दर्शाता है। मसलमैन का इस्तेमाल टीवी विज्ञापनों और होर्डिंग में किया गया। इसके बाद कंपनी साल 1967 में यूएसए को टायर एक्सपोर्ट करने वाली भारत की पहली कंपनी बनी। 1973 में MRF व्यावसायिक रूप से नायलॉन ट्रेवल कार टायरों की मैन्यूफैक्चरिंग और मार्केटिंग करने वाली भारत की पहली कंपनी बनी। एमआरएफ ने साल 1973 में पहला रेडियल टायर बनाया था। पहली बार साल 2007 में MRF ने एक अरब अमेरिकी डॉलर का कारोबार करके रिकॉर्ड बनाया था। अगले चार साल में कंपनी का कारोबार बढ़कर 4 गुना तक पहुंच गया। एमआरएफ इस समय कमर्शियल विमानों के साथ ही फाइटर विमानों के लिए भी टायर बना रही है।

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