महाभारत काल की एक महत्वपूर्ण कहानी…
रायपुर। महाभारत काल से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कहानी महर्षि अयोध्याधौम्य से जुड़ी है। द्वापरयुज में एक महान ऋषि हुआ करते थे जिनका नाम महर्षि आयोद्धौम्य था। महर्षि आयोद्धौम्य को ब्रह्म का ज्ञान था और उन्होंने इस ज्ञान को अपने शिष्यों को भी प्रदान किया। महर्षि आयोधौम्य ने शिष्य पर प्रसन्न होकर उसे स्पर्श मात्र से शक्तिपात कर दिया। सभी शिष्यों में तीन शिष्य प्रधान हुआ करते थे, जिनमें पांचाल देश के एक आरुणि भी सम्मिलित थे।
आरुणि गुरु का परम शिष्य था
आरुणि महर्षि आयोद्धौम्य के परम शिष्य थे। उसने सब कुछ सुना और उसने अपने शिक्षक की बात मानी। एक बार वर्षा ऋतु के समाप्त होने और शरद ऋतु के आगमन का समय आया। उस दिन आसमान में काले बादल छाए हुए थे। महर्षि ने वर्षा की भविष्यवाणी की और अपने परम शिष्य आरुणि को आश्रम के एक खेत की मेड़ बांधने भेजा।
मेड़ की जगह वह स्वयं ही लेट गया
गुरु की आज्ञा से आरुणि खेत में गया और मेड़ बाँधने लगा। उसी समय तेज बारिश होने लगी और वह बांध को बांधने में लगा हुआ था। लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी वह बांध नहीं बांध सका। जिसके बाद वो खुद टूटी मेड़ वाली जगह पर लेट गए. इससे पानी तो रुक गया, लेकिन उसकी जान जोखिम में पड़ गई।
गुरुजी चिंतित हो गए
ठंड और बारिश के कारण आरुणि मूर्छित हो गया लेकिन अपने स्थान से नहीं हिला। रात भर जब आरुणि वापस नहीं लौटा तो महर्षि आयोधौम्य को चिंता हुई। वह पूरी रात सो नहीं सका। सुबह उन्होंने अन्य शिष्यों से आरुणि के बारे में पूछा। तभी गुरुजी अपने शिष्यों के साथ मैदान में पहुंचे।
महर्षि आशीर्वाद दे रहे थे
महर्षि आयोद्धौम्य ने आरुणि को बाड़े के पास अचेत अवस्था में पड़ा देखा। उन्होंने अन्य शिष्यों की सहायता से आरुणि को आश्रम में लाकर उसका उपचार किया। उसके बाद अरुणि सुरक्षित हो गया। जब महर्षि आयोधौम्य ने यह देखा तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। तब उन्होंने आरुणि को वरदान दिया कि उनका नाम उद्दालक होगा और वे स्वत: ही सभी वेदों और धर्मशास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लेंगे। तत्पश्चात् आरुणि ब्रह्मर्षि उद्दालक होकर संसार में प्रसिद्ध हुआ।