नई दिल्ली : भारतीय वायुसेना स्वदेशी तकनीक पर जोर दे रही है। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने कहा कि आत्मनिर्भर बनने के प्रयासों का बेहतरीन परिणाम भी सामने आ रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले दो-तीन साल के दौरान कई ऐसे सैन्य उपकरण हैं, जिन्हें भारत में डेवलप किया गया है। वायुसेना प्रमुख ने बताया कि भारत में बनाए गए उपकरणों को वायुसेना ने हर कसौटी पर खरा पाया उसके बाद इसे वायुसेना के बेड़े में शामिल भी किया गया। उन्होंने बताया कि पिछले दो-तीन साल में विकसित ऐसे स्वदेशी उपकरणों की संख्या लगभग 60 हजार है।
अब 60 हजार से अधिक तकनीक स्वदेशी
पिछले दो से तीन वर्षों में 60,000 से अधिक उपकरणों घटकों (Components) का स्वदेशीकरण करने के संबंध में एयर चीफ मार्शल ने यह भी कहा कि वायु सेना मरम्मत और ओवरहॉल रखरखाव (overhaul maintenance) के लिए हमेशा विदेशी कंपनियों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। उन्होंने यह टिप्पणी नागपुर के भोंसला मिलिट्री स्कूल में कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान की।
आत्मनिर्भर बनना समय की मांग
वायुसेना प्रमुख के मुताबिक विदेशी ओईएम यानी ऐसी कंपनी जो उपकरणों की मूल निर्माता (Original Equipment Manufacturers) हैं, उन पर भारत हमेशा के लिए भरोसा नहीं कर सकता। बदलती परिस्थितियों में वायुसेना का मानना है कि मरम्मत और ओवरहॉल मेंटेनेंस जैसी कई चीजों के मामले में आत्मनिर्भर बनना होगा।
औद्योगिक जगत के योगदान पर भी बात, IAF से कौन सी कंपनियां जुड़ सकती हैं?
बेस रिपेयर डिपो (बीआरडी) के स्वदेशीकरण से जुड़े एक सवाल पर वायुसेना प्रमुख ने कहा, अब सभी बीआरडी में उद्योग जगत की अधिकांश कंपनियां काम कर सकेंगी। उन्हें आकर देखने का मौका मिल सकेगा कि वायुसेना के लिए औद्योगिक जगत कहां योगदान दे सकता है। बीआरडी के आलावा वायु सेना की सभी इकाइयों में योगदान करने के काबिल कंपनियों के लिए दरवाजे खुले हैं।एयरचीफ मार्शल के मुताबिक पिछले दो-तीन वर्षों की अवधि में 60 हजार से अधिक घटकों (Components) का स्वदेशीकरण करने में सफलता मिली है। वायुसेना ने मरम्मत और ओवरहॉल रखरखाव के मामले में आत्मनिर्भरता की जरूरत को महसूस किया है।
IAF चीफ परिवहन विमान का मलबा मिलने पर क्या बोले?
चेन्नई के समुद्र तट के पास बंगाल की खाड़ी में भारतीय वायु सेना के एक परिवहन विमान के मलबे से जुड़े सवाल पर एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने कहा, दुर्भाग्य से, इसमें बहुत लंबा समय लग गया, लेकिन समुद्र तल में ऐसी चीजों का पता लगा पाना उल्लेखनीय सफलता है। अब वायुसेना कम से कम गहरे समुद्र में (अन्वेषण) करने की तकनीक से लैस है। उन्होंने कहा कि मलबा मिलने के बाद लंबे समय से बना हुआ सस्पेंस खत्म हो गया। उन्होंने कहा कि तलाशी को सुविधाजनक बनाने और मलबे की खोज में सक्षम बनाने के लिए वायुसेना, महासागर और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की आभारी है।
साढ़े सात साल पुराने हादसे पर बयान
गौरतलब है कि रक्षा मंत्रालय के अनुसार, 29 कर्मियों के साथ वायुसेना का परिवहन विमान लापता हो गया था। लगभग साढ़े सात साल बाद इसका मलबा बरामद हुआ। भारतीय वायुसेना के इस परिवहन विमान का मलबा बंगाल की खाड़ी में लगभग 3.4 किमी की गहराई में पाया गया।