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आचार्य चाणक्य की सलाह, ऐसे स्थान को तत्काल छोड़ देना चाहिए

आचार्य चाणक्य ने जीवन दर्शन को लेकर कई बातें अपने ग्रंथ में कही है। उन्होंने अपने ग्रंंथ में कई श्लोकों के जरिए जीवन की जटिल समस्याओं के बारे में विस्तार से बात की है। आचार्य चाणक्य ने लक्ष्मी के स्वभाव को चंचल बताया है और ऐसे में विपत्ति काल के लिए धन संचय के महत्व के बारे में भी विस्तार से चर्चा की है –

विपत्ति काल में धन संचय क्यों जरूरी

आपदर्थे धनं रक्षेच्छीमतां कुत आपद:।

‘कदाचिच्चलिते लक्ष्मी: सड्चितोडपि विनश्यति॥

आचार्य चाणक्य ने कहा है कि विपत्ति काल के लिए मनुष्यों को धन का संचय अवश्य करना चाहिए। लेकिन कभी यह न सोचें कि धन के जरिए वे सभी संकट दूर कर लेंगे। चाणक्य ने कहा है कि चंचलता लक्ष्मी का स्वभाव है, इसलिए वह कहीं भी नहीं ठहरती। विपरीत परिस्थिति में धन का संचय मनुष्य की बुद्धिमत्ता का परिचायक है, इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं होता है कि बेशुमार धन होने से संकट का समय टल जाएगा।

ऐसे स्थान पर कभी न रुके

अस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः:।

न च विद्यागमः: कश्चित् तं देशं परिवर्जयेत्॥

आचार्य ने कहा है कि जिस स्थान पर मनुष्य का आदर-सम्मान न हो, आजीविका के साधन न हो, अनुकूल मित्र एवं सगे संबंधी न हो, ऐसा स्थान उसके लिए कभी भी उपयुक्त नहीं हो सकता है। ऐसे स्थान को बगैर विलंब किए छोड़ देना चाहिए।

जहां भी रहें, ये 5 विद्वान होना जरूरी

धनिक: श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पंचम:।

पंच यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसं वसेत्॥

आचार्य चाणक्य ने आगे कहा है कि ऐसा स्थान जहां 5 प्रकार की मूलभूत जरूरतें उपलब्ध न हो, ऐसे स्थान को भी तत्काल त्याग देना चाहिए। आचार्य चाणक्य ने इन मूलभूत जरूरतों में कर्मकांडी ब्राह्मणों, न्यायप्रिय राजा, धनी-संपन्न व्यापारी, जलयुक्त नदियों और योग्य चिकित्सक की गणना की है। जहां पर ये 5 तरह के लोग न हो, उस स्थान को त्याग देना चाहिए।

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