Site icon khabriram

आचार्य चाणक्य ने बताया, ऐसे करें असली ‘ब्राह्मण’ की पहचान

आज ‘ब्राह्मण’ शब्द को भले ही जातिवादी लिया जाता हो लेकिन पौराणिक हिंदू धर्म में समाज व्यवस्था कर्म के आधार पर विभाजित की गई थी और व्यक्ति को ‘ब्राह्मण’ जन्म के आधार पर नहीं, बल्कि कर्म का आधार पर कहा जाता था। आचार्य चाणक्य ने भी नीति शास्त्र में इस बारे में विस्तार से उल्लेख किया है और कहा है कि असली ‘ब्राह्मण’ की पहचान कैसे की जाती है। ‘ब्राह्मण’ व्यक्ति की पहचान के लिए इन श्लोकों का जिक्र किया है –

परकार्यविहन्ता च दाम्भिक स्वार्थ साधकः ।

छली द्वेषी मृदुः क्रूरो विप्रो मार्जार उच्यते।।

आचार्य चाणक्य के मुताबिक जो दूसरों के कार्य को बिगाड़ देता है, ढोंगी है, अपना ही स्वार्थ सिद्ध करने में लगा रहता है, दूसरों को धोखा देता है, सबसे द्वेष करता है, ऊपर से देखने में अत्यंत नम्र और अंदर से पैनी छुरी के समान है, ऐसे ब्राह्मण के स्थान पर बिलाव कहा जाना चाहिए।

आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जिस व्यक्ति का ध्यान सदा दूसरों के कार्य बिगाड़ने में लगा रहता है, जो सदा ही अपने स्वार्थ की सिद्धि में लगा रहता है, लोगों को धोखा देता है, बिना कारण के ही उनसे शत्रुता रखता है, जो ऊपर से कोमल और अन्दर से क्रूर है, उस ब्राह्मण को बिलाव के समान निकृष्ट पशु माना गया है।

वापी कूप तडागानामाराम सुर वेश्मनाम्

उच्छेदने निराssशंकः स विप्रो म्लेच्छ उच्यते ।।

आचार्य चाणक्य ने एक अन्य सूत्र में कहा है कि जो ब्राह्मण पानी के स्थानों, बावड़ी, कुआं, तालाब, बाग-बगीचों और मंदिरों में तोड़- फोड़ करने में किसी प्रकार का भय न अनुभव करते हों, उन्हें म्लेच्छ कहा जाता है। उनके मुताबिक पीने के जल वाले स्थानों, उद्यानों और मंदिरों आदि के निर्माण का धर्मग्रंथो में अत्यधिक महत्व है। ऐसे कार्य करना बताता है कि उन्हें करने वाला केवल अपने बारे में ही नहीं औरों के बारे में भी सोचता है।

आचार्य चाणक्य के मुताबिक जो व्यक्ति खुद से ज्यादा दूसरों को माने सर्वोपरि माने। जनहित के चिंतन में लीन रहे, वही ब्राह्मण है। परोपकार की भावना ही ब्राह्मण का परिचय देती है और जो इन्हें नष्ट करने वाला हो, करुणा विहीन और क्रूर हो वह ब्राह्मण कैसे हो सकता है। ऐसे व्यक्ति को तो तुच्छ या म्लेच्छ ही कहना चाहिए।

देवद्रव्यं गुरुद्रव्यं परदाराभिमर्शनम् ।
निर्वाहः सर्वभूतेषु विप्रश्चाण्डाल उच्यते ।।

एक अन्य श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो देवताओं और गुरु के धन को चुरा लेता है, दूसरों की स्त्रियों के साथ सहवास करता है और जो सभी तरह के प्राणियों के साथ अपना जीवन गुजार लेता है, उस ब्राह्मण को चाण्डाल कहा जाता है।

Exit mobile version