CG : भ्रष्टाचार के आरोप में घिरी भाजपा सरकार, BJP के इस दिग्गज मंत्री पर लगा सरकारी जमीन हड़पने का आरोप

रायपुर। छत्तीसगढ़ की कांग्रेस (Congress) सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर सत्ता में आई भाजपा (BJP) सरकार अब खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से दो चार हो रही है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने साय सरकार में मंत्री और रायपुर से बीजेपी के प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Agrawal) के ख़िलाफ़ गंभीर आरोप लगाए हैं.

दीपक बैज ने आरोप लगाया है कि बृजमोहन अग्रवाल की पत्नी ने झलकी में जल संसाधन विभाग की जमीन गलत तरीके से कब्जा कर रिसॉर्ट बनाया है. इसके बाद महासमुंद कोर्ट ने 23 अप्रैल को अपने फ़ैसले में बृजमोहन अग्रवाल के परिवार से जुड़ी जमीनों की रजिस्ट्री शून्य घोषित कर दी है. उन्होंने कहा कि इससे साफ़ है कि बृजमोहन अग्रवाल महासमुंद के तुमगांव के ग्राम झलकी में जलाशय की जमीन को गलत तरीके से खरीदकर कब्जा किया था.

जमीन कब्जाने के लिए ऐसे किया खेला
1994 में ग्राम झलकी में ईश्वर प्रसाद ने 4.124 हेक्टेयर भूमि जल संसाधन विभाग को जलाशय बनाने रजिस्ट्रीकृत दान पत्र के द्वारा दी थी, जिसका जल संसाधन विभाग ने राजस्व प्रपत्र में नामांतरण नहीं कराया. जब बृजमोहन अग्रवाल राज्य में जल संसाधन मंत्री थे, तब उन्हें जानकारी थी की ये ज़मीन शासन को दान पात्र में दी का चुकी है. इसके बावजूद ईश्वर प्रसाद के मृत्यु के बाद उनके पुत्रों विष्णु, किशुन, कृष्ण लाल साहू के नाम राजस्व रिकॉर्ड में खं. नं. 117 रकबा 4.124 हेक्टेयर भूमि चढ़ाकर अपनी पत्नी सरिता अग्रवाल के नाम खरीद कर छल के साथ शासकीय भूमि पर कब्जा कर लिया.

जिला न्यायालय में यह मामला राज्य शासन की तरफ से दायर किया गया था. उसमें जल संसाधन मंत्रालय विरूद्ध विष्णु, किशुन, कृष्णपाल एवं सरिता अग्रवाल पति बृजमोहन अग्रवाल के प्रकरण में 23 अप्रैल 2024 को फैसला सुनाते हुए जमीनों की रजिस्ट्री शून्य घोषित कर दी है.

क्या है झलकी जमीन विवाद: झलकी जमीन विवाद का पहली बार खुलासा साल 2017 में हुआ. राज्य शासन की रिपोर्ट में महासमुंद के सिरपुर क्षेत्र की सरकारी वन भूमि पर पूर्व मंत्री और उनके परिजनों का कब्जा पाया गया. इस सरकारी जमीन पर बना रिसॉर्ट तत्कालीन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की पत्नी सरिता अग्रवाल और बेटे अभिषेक अग्रवाल के नाम था. जमीन का मालिकाना हक़ कैसे प्राइवेट व्यक्ति को सौंप दिया गया , इसकी जांच राज्य के मुख्य सचिव ने की थी. जांच में कहा गया था कि यह सरकारी जमीन गलत तरीके से मंत्री के परिजनों ने खरीदी. यह जमीन स्थीनीय किसानों ने 2009 में नहर के निर्माण के लिए जल संसाधन विभाग को दान में दी थी. इस जमीन को बाद में जल संसाधन विभाग ने वन विभाग को सौंप दिया था.लेकिन साल 2012 में गुपचुप ढंग से यह जमीन मंत्री के परिजनों के स्वामित्व में चली गई. जांच रिपोर्ट के बाद महासमुंद जिले के डीएम को इस जमीन की रजिस्ट्री शून्य करने के निर्देश दिए थे. इसके बाद यह मामला न्यायालय में था और अब इसका फैसला आया है.

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