शारदीय नवरात्र की महानवमी तिथि पर मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री की महिमा का शास्त्रों में विस्तार से वर्णन किया गया है। शिव पुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव ने सिद्धि प्राप्त करने के लिए मां सिद्धिदात्री की पूजा की थी। मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से साधक को शुभ कार्यों में सफलता मिलती है। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त कष्ट और संकट से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो महानवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्री की विधि-विधान से पूजा करें।
मां सिद्धिदात्री व्रत कथा
सनातन ग्रंथों में यह बताया गया है कि जब ब्रह्मांड में कुछ भी मौजूद नहीं था। हर तरफ सिर्फ अंधेरा था। उसी क्षण ब्रह्माण्ड में प्रकाश की एक किरण प्रकट हुई। प्रकाश की यह किरण तेजी से फैलने लगी। इस पुंज से एक देवी प्रकट हुईं। इसके बाद प्रकाश किरण का विस्तार रुक गया। प्रकाश किरण से प्रकट हुई देवी मां सिद्धिदात्री थीं। मां सिद्धिदात्री ने अपने तेज से त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश को प्रकट किया। तब माता सिद्धिदात्री ने तीनों देवताओं को सृष्टि का संचालन करने का आदेश दिया। तब त्रिदेवों ने मां सिद्धिदात्री की कठिन तपस्या की। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर, माँ ने त्रिदेवों को शक्ति और सिद्धि प्रदान की।
देवी मां का स्वरूप मां सिद्धिदात्री
मां सिद्धिदात्री के मुख पर एक दीप्तिमान आभा झलकती है। यह प्रकाश सभी संसारों में कल्याण लाता है। माता की चार भुजाएं हैं। मां कमल पर विराजमान हैं और सिंह की सवारी करती हैं। मां के एक हाथ में सुदर्शन चक्र और दूसरे हाथ में गदा है। तीसरे में शंख है और चौथे में कमल का फूल है। माँ अपने भक्तों के सभी दुःख दूर कर देती है।