इंफोसिस के दफ्तर में झाड़ू-पोछे के काम, कभी 80 रुपये रोज कमाने वाला आज दो कंपनियों का है मालिक

नई दिल्ली: हो सकता है कि आपको ये कहानी फिल्मी लगे, लेकिन दादा साहेब भगत की कहानी हर किसी को जाननी चाहिए। कोई सोच भी नहीं सकता कि 80 रुपये की दिहाड़ी पर मिट्टी ढोने का काम करने वाला, ऑफिस में चपरासी की नौकरी करने वाला, दूसरों को चाय-पानी पिलाने वाला, दफ्तर की फर्श साफ करने वाला अपनी कंपनी खड़ी कर सकता है। लेकिन दादा साहेब भगत ने तो इसे सच साबित कर दिया।

​गरीबी में बीता बचपन​

दादासाहेब भगत का जन्म 1994 में महाराष्ट्र के बीड में हुआ था। पुणे से क़रीब 200 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े ज़िले में बीड़ के रहने वाले दादासाहेब भगत का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ। माता-पिता गन्ने के खेतों में कटाई का काम करते थे। मजदूरी के लिए उन्हें कई बार गांव से बाहर भी जाना पड़ता था। घर की आर्थिक हालात इतनी खराब थी कि 14 साल की उम्र में ही वो कुआं खोदने, मिट्ठी ढ़ोने का काम करने लगे। उन्हें इसके बदले रोज 80 रुपये मिलते थे। हालांकि दादासाहेब जानते थे कि पढ़ाई ही वो हथियार है, जिसके माध्यम से वो अपनी किस्मत को बदल सकते हैं।

​दफ्तर में लगाते थे झाड़ू-पोछा​

साल 2009 में दादासाहेब शहर चले आए। उन्हें इंफोसिस कंपनी में काम मिल गया। ऑफिस ब्वॉय की नौकरी के लिए उन्हें 9000 रुपये की सैलरी मिलने लगी। उन्हें ऑफिस में दूसरों को चाय-पानी पिलाना पड़ता था। झाड़ू-पोछा, साफ-सफाई करना पड़ता था। उन्होंने अपनी चपरासी की नौकरी की बात माता-पिता को नहीं बताई थी। हालांकि इंफोसिस में काम करना उनके लिए अच्छा रहा। उन्होंने देखा कि लोग कंप्यूटर में कुछ करते हैं, जिसकी वजह से वो बड़ी-बड़ी गाड़ियों से आते है। कंप्यूटर को लेकर उनकी इच्छा जागने लगी। उन्होंने वहीं से कंप्यूटर और उसकी तकनीक से जुड़ी डिटेल सीखना शुरू कर दिया। रात में ग्राफिक्स डिजाइनिंग और एनीमेशन की पढ़ाई करते थे। नौकरी के साथ-साथ C++ और Python का कोर्स किया।

दो-दो कंपनियों के मालिक

ऑफिस के बाद उन्होंने कंप्यूटर सीखना शुरू किया। ग्राफ़िक्स-डिज़ाइनिंग का कोर्स कर लिया था उन्होंने एक ग्राफिक्स कंपनी के साथ काम करना शुरू किया, ताकि वो ग्राफिक्स, VFX, मोशन ग्राफ़िक्स जैसी चीजों को और समझ सके। सब ठीक चल रहा था कि एक दिन दादासाहेब के साथ एक हादसा हो गया। एक्सीडेंट के बाद वो शहर छोड़कर तीन महीने के लिए गांव चले गए। वहां से उन्होंने दोस्त से किराए पर लैपटॉप लिया और टेम्प्लेट बनाकर उसे एक प्लेटफ़ॉर्म पर बेचना शुरू किया। उन्हें सैलरी से ज्यादा कमाई होने लगी। फिर उन्होंने सोचा कि जो काम वो किसी और के प्लेटफॉर्म से करते हैं, क्यों न अपने से करें। साल 2016 में दादासाहेब ने ख़ुद की Ninthmotion कंपनी शुरू की। उनके पास 40 हज़ार से अधिक एक्टिव यूजर्स पहुंचने लगे। वो यहां भी नहीं रूकें, उन्होंने ऑनलाइन ग्राफिक्स डिजाइनिंग का नया सॉफ्टवेयर डिजाइन कर दिया। ये सॉफ्टवेयर कैनवा जैसा ही है। इस कंपनी का नाम रखा DooGraphics । उनके पास बड़ी-बड़ी कंपनियों से ऑफर आने लगे। आज उनकी दोनों कंपनियों 2 करोड़ की हो गई है। पीएम मोदी ने भी 26 सितंबर 2020 को ‘मन की बात’ में दादासाहेब के काम की और उनके लगन की तारीफ की।

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