भारत से आर्मेनिया की मदद को क्यों उठ रही मांग, अजरबैजान की जीत का तुर्की-पाकिस्तान से क्या संबंध

येरवेन: अजरबैजान के साथ युद्ध में भारत का दोस्त देश आर्मेनिया नागोर्नो-काराबाख का क्षेत्र हार चुका है। अब नागोर्नो-काराबाख पर अजरबैजान का कब्जा है। इसके बाद से ही नागोर्नो-काराबाख में रहने वाले लाखों अर्मेनियाई मूल के लोग अपने घरों को छोड़कर आर्मेनिया में शरण लेने पहुंच रहे हैं। इस बीच रविवार को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अर्मेनियाई विदेश मंत्री से मुलाकात की।

इस दौरान दोनों ही नेताओं में द्विपक्षीय संबंध और नागोर्नो-काराबाख के ताजा हालात पर चर्चा हुई। भारत और आर्मेनिया लंबे समय से दोस्त हैं। ऐसे में आर्मेनिया की हार को भारत से जोड़कर भी देखा जा रहा है। आर्मेनिया ने हाल के कुछ वर्षों में भारत से बड़ी मात्रा में हथियारों की खरीद की है, जिसमें पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर से लेकर 155 एमएम के टीसी-40 होवित्जर भी शामिल है। हालांकि, आर्मेनिया ने नागोर्नो-काराबाख पर अजरबैजान के आक्रमण के खिलाफ अपनी सैन्य शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया है।

नागोर्नो-काराबाख पर अजरबैजान की जीत को तुर्की और पाकिस्तान से भी जोड़ा जा रहा है। पिछले हफ्ते अजरबैजान ने तुर्की के समर्थन से नागोर्नो-काराबाख एन्क्लेव पर आक्रमण किया था। नागोर्नो-काराबाख को आर्टाख गणराज्य भी कहा जाता है, जहां अर्मेनियन मूल के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। अजरबैजान के कब्जे के बाद आर्टाख गणराज्य की सरकार को भंग कर दिया गया है और वहां की सेना ने भी अपने हथियार डाल दिए हैं। आर्मेनिया को नागोर्नो-काराबाख से जोड़ने वाले लाचिन कॉरिडोर को पिछले साल की सर्दियों से अज़रबैजान ने बाधित कर दिया था। इसके बाद से ही नागोर्नो-काराबाख से आर्मेनिया का संपर्क टूट गया था। इससे नागोर्नो-काराबाख में भोजन की गंभीर कमी हो गई थी। नागोर्नो-काराबाख को होने वाली बिजली और गैस की आपूर्ति भी ठप हो गई थी। ऐसे में नागोर्नो-काराबाख के नागरिकों के सामने आत्मसमर्पण के अलावा कोई चारा नहीं था।

दुनिया में अकेला पड़ा आर्मेनिया

पूरी दुनिया इस समय रूस-यूक्रेन युद्ध में उलझी हुई है। दुनिया के शक्तिशाली देशों ने जुबानी सांत्वना देने के अलावा आर्मेनिया के लिए कुछ नहीं किया है। दरअसल, सोवियत संघ के विघटन के बाद पैदा हुआ आर्मेनिया शुरू से ही अपनी रक्षा को लेकर रूस पर निर्भर रहा है। आर्मेनिया रूस के नेतृत्व वाले सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) सहयोगी है। वर्तमान में रूस, यूक्रेन युद्ध में व्यस्त है। ऐसे में उसके पास आर्मेनिया पर ध्यान देने का समय ही नहीं है। दूसरा कारण यह भी है कि अजरबैजान जिस वैश्विक गठजोड़ का हिस्सा है, उसके साथ रूस के अच्छे संबंध हैं। ऐसे में रूस एक छोटे से कमजोर देश के लिए अजरबैजान की दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहता है। आर्मेनिया का सहयोगी ईरान भी इस संघर्ष से दूर बैठा है। इसके बावजूद आर्मेनिया नागोर्नो-काराबाख के सभी शरणार्थियों को स्वीकार करने के लिए तैयार है।

अजरबैजान की जीत का तुर्की से क्या संबंध

अजरबैजान और तुर्की काफी पुराने दोस्त हैं। नागोर्नो-काराबाख पर आक्रमण के दौरान अजरबैजान ने तुर्की के हथियारों का जबरदस्त इस्तेमाल किया। इसी कारण अजरबैजान को आर्मेनिया समर्थक विद्रोहियों को हराने में आसानी हुई। अजरबैजान और तुर्की नागोर्नो-काराबाख के लोगों के खिलाफ गलत प्रचार भी कर रहे हैं। उनका दावा है कि नागोर्नो-काराबाख के अर्मेनियाई लोगों का यह सामूहिक पलायन स्वैच्छिक है और उनमें से किसी को भी छोड़ने के लिए नहीं कहा गया है। लेकिन अजरबैजान सेना के आगे बढ़ने के दौरान उन्हें सुरक्षा का कोई आश्वासन नहीं दिया जा रहा है। इसके बजाय, अर्मेनियाई लोगों के चले जाने के बाद भी बम विस्फोट और नागरिकों की हत्याएं एक अलग तस्वीर पेश करती हैं। सदियों से तुर्क इस्लामी ताकतों के हाथों क्रूर उत्पीड़न का सामना करने के बाद, ईसाई अर्मेनियाई लोग उनकी दया पर निर्भर रहने से बेहतर जानते हैं।

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